मध्य प्रदेश में सत्ता का बदलाव होने और भाजपा की सत्ता में फिर वापसी को भले ही एक साल हो गया हो, मगर निगम-मंडलों में नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं. आगामी दिनों में इन नियुक्तियों के होने के आसार भी कम हैं, क्योंकि नगरीय निकाय अथवा पंचायतों के चुनावों की तारीखों का इसी माह ऐलान जो होने वाला है. ज्ञात हो कि राज्य में डेढ़ दशक तक सत्ता में रहने के बाद वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था, मगर कांग्रेस की सरकार महज 15 माह ही रह सकी. कांग्रेस के तत्कालीन वरिष्ठ नेता ज्येातिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में 22 विधायकों के विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के कारण कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकल गई.
राज्य में भाजपा सत्ता में लौटी और उपचुनाव में बड़ी जीत हासिल की. उप-चुनाव के बाद से ही निगम-मंडलों में नियुक्तियों का मामला गर्माया हुआ है. सिंधिया समर्थकों को मंत्रिमंडल में जगह दिए जाने से भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई है. पार्टी की कोशिश है कि ऐसे नेताओं को निगम-मंडलों में स्थान दिया जाए. वहीं सिंधिया समर्थक भी बड़े दावेदार हैं। परिणाम स्वरुप नियुक्तियों का फैसला नहीं हो पा रहा है.
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भाजपा के एक नेता का कहना है कि राज्य निर्वाचन आयुक्त ने इसी माह नगरीय निकाय या पंचायत के चुनावों की तारीखों के ऐलान का संकेत दिया है, इसके चलते यह मान लेना चाहिए कि आगामी दो से तीन माह तक किसी तरह की नियुक्ति होंगी यह संभव प्रतीत नहीं हेाता. ऐसा इसलिए क्योंकि सत्ता और संगठन से जुड़े लोग चुनाव में सक्रिय रहेंगे, साथ ही इन नियुक्तियों के जरिए किसी तरह का विवाद पार्टी नहीं चाहेगी.
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वहीं राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि निगम-मंडलों की नियुक्ति के जरिए पार्टी के भीतर किसी तरह का मोर्चा खोलने को कोई भी बड़ा नेता तैयार नहीं है. लिहाजा यह टल रहा है और आगे भी यह टलता रहे तो अचरज नहीं होना चाहिए. कांग्रेस जहां 15 माह में गिनती की नियुक्तियां की ठीक इसी तरह भाजपा भी एक साल में कुछ ही नियुक्तियां कर पाई है. कुल मिलाकर दोनों दलों में पद हासिल करने की लड़ाई चलती है, उसी का नतीजा है कि निगम मंडलों मे नियुक्तियां हो पा रही हैं.
HIGHLIGHTS
- साल भर बाद भी आयोगों-मंडलों में नियुक्तियां अटकीं
- पंचायत चुनाव के मद्देनजर अभी भी लटका रहेगा मामला
- बीजेपी नहीं चाहती ऐन चुनाव के समय कोई मतभेद उभरें