देश और मध्य प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की चल रही कोशिशों के बीच मध्य प्रदेश के नीमच जिले से एक अच्छी तस्वीर सामने आ रही है. कभी वीजा काउंसलर रही मीनाक्षी धाकड़ यहां अब मधुमक्खी पालन के जरिए महिला सशक्तीकरण और खेती को फोयदे का धंधा बनाने की मुहिम पर आगे बढ़ रही है. उनके इस प्रयास से एक तरफ जहां महिलाओं को रोजगार मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर आत्मनिर्भर भारत तथा आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश की दिशा में कदम भी बढ़ा रही हैं.
नीमच जिले में है अठाना गांव, जहां मीनाक्षी धाकड़ ने मधुमक्खी पालन का काम शुरू किया है. वो महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम करने की इच्छा लेकर चल रही है. यही कारण है कि उन्होंने अपने इस कारोबार से सिर्फ महिलाओं को ही जोड़ा है.
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मीनाक्षी कभी दिल्ली में वीजा काउंसलर हुआ करती थी, उन्होंने एम कॉम और एमबीए की शिक्षा हासिल करने के बाद इस पेशे को चुना. मूल रूप से राजस्थान के कोटा की रहने वाली मीनाक्षी की शादी नीमच में हुई. उनके पति डॉ कृष्ण कुमार धाकड़ प्राकृतिक चिकित्सक हैं. इसके चलते उन्होंने दिल्ली की नौकरी छोड़कर गांव में महिला सशक्तीकरण और खेती को फोयदे का धंधा बनाने की योजना बनाई.
मीनाक्षी बताती है कि क्या काम किया जाए, इसका चयन उनके लिए बड़ी चुनौती था. काफी विचार-विमर्श के बाद मधुमक्खी पालन पर उन्होने अपने को केंद्रित किया. इसके लिए स्किल इंडिया के तहत भारतीय कौशल परिषद से एक माह का मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण हासिल किया. उसके बाद उन्होंने अन्य महिलाओं को प्रशिक्षित कर मधुमक्खी पालन का कारोबार शुरू किया. वर्तमान में उनके साथ सात महिलाएं काम कर रही हैं और वे रोजगार के मामले में आत्मनिर्भर भी हो रही हैं.
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मधुमक्खी पालन से होने वाले लाभ का जिक्र करते हुए मीनाक्षी बताती हैं कि उन्होंने 50 बॉक्स में मधुमक्खी का पालन किया है और साल भर में लगभग पांच से छह लाख रुपये की आमदनी हासिल कर लेती हैं और साथ ही सात महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं. साल भर में पांच टन शहद का उत्पादन करने में सफ ल हो रही हैं. मधुमक्खी पालन को आजीविका का साधन बनाने वाली मीनाक्षी सिर्फ शहद ही नहीं बना रही हैं, बल्कि शहद से बनने वाले अन्य उत्पाद भी बाजार में लेकर आई हैं.
मीनाक्षी की मानें तो उन्होंने अपना स्वयं का शहद ब्रांड शुरू कर दिया है जो देश के विभिन्न हिस्सों में जाता है. उनका कहना है कि उन्होंने अपने उत्पाद को किसी व्यापारी या कारोबारी को बेचने की बजाय अपना ब्रांड बनाया है और उसके चलते उनका मुनाफो भी बढ़ा है. वे उत्पादकों को सलाह देती हैं कि फोयदा कमाने के लिए अपने उत्पाद को ब्रांड में बदलें और बड़े कारोबारी को अपना उत्पाद न बचें तो लाभ कहीं ज्यादा होगा.
Source : IANS