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हीरा के लिए कुर्बान होने वाले बुंदेलखंड के जंगलों को बचाने खातिर हो रहे गोलबंद

सूखा, गरीबी, पलायन और बेरोजगारी के लिए दुनिया में पहचाने जाने वाले बुंदेलखंड के हरे-भरे जंगलों को भी उजाड़ने की इबारत लिखी जाने की तैयारी है. इस बार निशाने पर हैं छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगल, जहां हीरो की खुदाई की जानी है.

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Vineeta Mandal
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जंगलों को बचाने के लिए विरोध हुआ तेज

जंगलों को बचाने के लिए विरोध हुआ तेज( Photo Credit : (फोटो-Ians))

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सूखा, गरीबी, पलायन और बेरोजगारी के लिए दुनिया में पहचाने जाने वाले बुंदेलखंड के हरे-भरे जंगलों को भी उजाड़ने की इबारत लिखी जाने की तैयारी है. इस बार निशाने पर हैं छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगल, जहां हीरो की खुदाई की जानी है. इसके लिए यह इलाका एक निजी कंपनी को सौंपा जा रहा है. सरकार और निजी कंपनी के बीच चल रही कवायद का विरोध शुरू हो गया है और गांव से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पर गोलबंदी भी तेज हो गई है. सूत्रों की मानें तो छतरपुर जिले के बक्सवाहा में हीरो का भंडार है और यहां लगभग 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे हो सकते हैं. इसकी कीमत कई हजार करोड़ आंकी गई है.

यहां हीरा पन्ना से ज्यादा होने का अनुमान है. जिस कंपनी ने हीरे खनन का काम लेने में दिलचस्पी दिखाई है, वह इस इलाके की लगभग 382 हेक्टेयर जमीन की मांग कर रही है. ऐसा अगर होता है तो इस इलाके के लगभग सवा दो लाख वृक्षों पर असर पड़ेगा और यूं कहें कि सीधे तौर पर वे नष्ट कर दिए जाएंगे, इनमें लगभग 40 हजार पेड़ तो सागौन के ही हैं इसके अलावा पीपल, तेंदू, जामुन, बहेड़ा, अर्जुन जैसे औषधीय पेड़ भी हैं .

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बताया गया है कि लगभग साल पहले राज्य सरकार ने इस जंगल की नीलामी की प्रक्रिया शुरू की थी और एक ने सबसे ज्यादा की बोली लगाई, इसके चलते यह जमीन 50 साल के लिए पट्टे पर दी जाने वाली है. बताया गया है कि इस जंगल में लगभग 63 हेक्टेयर इलाका ऐसा है, जहां हीरा निकलने की संभावना है और इसे चिन्हित भी कर दिया गया है, लेकिन परियोजना के तहत 382 हेक्टेयर जमीन की मांग की गई है.

बताया गया है कि जो जमीन मांगी गई है, उसमें से 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खनन और खदानों से निकले मलबे को जमा करने के लिए किया जाएगा. इस परियोजना पर कंपनी लगभग ढाई हजार करोड़ रुपये खर्च करने वाली है.

इस परियोजना के शुरू होने से विरोध के स्वर उठने लगे हैं, कोरोना काल में ऑक्सीजन का महत्व बताया गया और पेड़ों के का नाता आक्सीजन से है. आंदोलन की तैयारियां शुरू हो गई हैं अभी यह सिर्फ सोशल मीडिया पर जोर पकड़े हुए हैं. सेव बक्सवाहा फॉरेस्ट, इंडिया स्टैंड विथ बक्सवाहा, बक्सवाहा जंगल आदि के नाम सर सोशल मीडिया पर अभियान चलाए जा रहे हैं.

इस अभियान को राजनीतिक नेताओं का भी समर्थन मिलने लगा है. बिजावर के विधायक राजेश शुक्ला और कांग्रेस के बंडा से विधायक तवर सिंह लोधी ने इस परियोजना को क्षेत्र और पर्यावरण के लिए नुकसानदायक बताया है, साथ पेड़ काटने की अनुमति न दिए जाने की मांग उठाई है.

इलाहबाद के शोध छात्र और बुंदेलखंड के निवासी राम बाबू तिवारी का कहना है कि यह परियोजना बुंदेलखंड के लिए अभिशाप है. एक तरफ कोरोना काल ने यह बता दिया है कि जीवन के लिए ऑक्सीजन कितनी जरूरी है, दूसरी ओर पेड़ काटे जाने की योजना बनाई जा रही है. वैसे ही इस क्षेत्र की दुर्गति किसी से छुपी नहीं है, अब तो इसे और गर्त में ले जाने की तैयारी है.

लिहाजा, इस परियोजना का हर हाल और हर स्थिति में विरोध किया जाएगा. इसके लिए सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे अभियानों को देश ही नहीं, दुनियाभर से समर्थन मिल रहा है. पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन भी चलाया जाएगा.

वहीं राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जन-जन के सहयोग से प्रदेश के हरित क्षेत्र में वृद्धि कर पर्यावरण को स्वच्छ और प्रकृति को प्राणवायु से समृद्ध करने के उद्देश्य से अंकुर कार्यक्रम आरंभ किया गया है. कार्यक्रम के अंतर्गत पौधरोपण के लिए जन-सामान्य को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से पौधा लगाने वाले चयनित विजेताओं को प्राणवायु अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा. मुख्यमंत्री चौहान के इस ऐलान पर भी सोशल मीडिया पर तंज सके जा रहे हैं.

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