Madhya Pradesh के 28 विधानसभा क्षेत्रों में हो रहे उप-चुनाव (Bypolls) में बड़ी जीत हासिल करने के लिए भाजपा और कांग्रेस फूंक-फूंक कर कदम रख रही है. एक-एक विधानसभा क्षेत्र पर उसकी पैनी नजर है तो हर क्षेत्र के लिहाज से खास रणनीति पर काम किया जा रहा है. दोनों दलों का जोर बूथ स्तर पर है और इसके लिए जिम्मेदारी भी तय कर दी गई है. राज्य की सियासत के लिहाज से इस बार के उप-चुनाव काफी अहम हैं, क्योंकि चुनावी नतीजे सत्ता में बदलाव तक ला सकते हैं. यही कारण है कि दोनों प्रमुख दल अपना जोर लगाने में पीछे नहीं है. एक तरफ जहां चुनाव प्रचार आक्रामक है, तो दूसरी ओर मतदान केंद्रों तक की जमावट किए जाने के साथ जाति-वर्ग विशेष के मतदाताओं पर जोर दिया जा रहा है.
भाजपा का विजय जनसंकल्प अभियान
भाजपा ने मतदान केंद्रों तक अपनी पकड़ को मजबूत बनाने के लिए विजय जनसंकल्प अभियान चलाया है. इस अभियान के जरिए भाजपा आम मतदाता के करीब तक पहुंचने की जुगत में लगी है, इस काम में पार्टी ने बड़े नेताओं तक को लगा दिया है. इसके साथ ही पार्टी ने उन मतदान केंद्रों पर जहां छह सौ तक मतदाता है, वहां दस कार्यकतार्ओं की टीम तैनात की है. कुल मिलाकर भाजपा अपने कार्यकर्ताओं के जरिए जमीनी तैयारी में जुट गई है.
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कांग्रेस को खुद पर भरोसा
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ तो सत्ता से बाहर होने के बाद से ही बूथ मैनेजमेंट के काम में लगे हुए हैं. कांग्रेस के पास मजबूत संगठन न होने की बात से पार्टी अध्यक्ष भी वाकिफ हैं और इसीलिए उन्होंने मतदान केंद्रों पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की रणनीति पर काम किया है. पार्टी हर मतदान केंद्र पर कार्यकर्ताओं की तैनाती पर खास ध्यान दिए हुए है.
मतदाताओं को पोलिंग बूथ पर लाना बड़ी कवायद
एक तरफ जहां राजनीतिक दल मतदान केंद्र स्तर पर जोर लगाए हुए है, वहीं कोरोना संक्रमण के डर के कारण मतदाताओं के घरों से कम निकलने की आशंका भी अभी से सताए जा रही है. यही कारण है कि दोनों प्रमुख दल मतदाता को मतदान केंद्र तक लाने की रणनीति पर भी काम कर रहे हैं. वे यह भी जानते है कि अगर घरों से मतदाता कम निकला तो नतीजे प्रभावित हो सकते हैं.
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जातीय समीकरणों पर फोकस
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल जातीय समीकरणों पर भी ध्यान दिए हुए है, यही कारण है कि उन्होंने जिस विधानसभा क्षेत्र में जिस जाति के मतदाता अधिक हैं उन जातियों के नेताओं को सक्रिय कर दिया है. इसके अलावा अलग-अलग समाज के प्रतिनिधियों के साथ बैठकों का क्रम भी जारी रखे हुए है. समाज के प्रमुख लोगों को भोपाल बुलाकर उनसे संवाद किया जा रहा है, इसके साथ ही चुनाव के बाद उनकी मांगों पर ध्यान देने के वादे किए जा रहे हैं.
एक दशक तक तय करेंगे सियासत
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उप-चुनाव राज्य की आगामी एक दशक की सियासत को तय करने वाले होंगे, क्योंकि ये ऐसे उप चुनाव हैं जिसके जरिए ही सत्ता बरकरार रखी जा सकती है, तो दूसरी ओर सत्ता हासिल की जा सकती है. जो भी राजनीतिक दल अपने प्रयास में सफल होगा, उसका संगठन और कार्यकर्ता दोनों उत्साहित होंगे. इसका असर आगे तक जाएगा, क्योंकि आगामी समय में नगरीय निकाय, पंचायत के चुनाव जो होने वाले हैं.