मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन का मंगलवार को निधन हो गया. लालजी काफी समय से बीमार चल रहे थे और उनका इलाज लखनऊ के अस्पताल में चल रहा था. टंडन को सांस लेने में दिक्कत, पेशाब की समस्या और बुखार के चलते 11 जून को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. स्वास्थ्य सम्बन्धी जांचों के दौरान उनके लिवर में भी दिक्कत पायी गयी और उनका इमरजेंसी ऑपरेशन किया गया था. ऑपरेशन के बाद टंडन को आईसीयू में विशेषज्ञों की निगरानी में रखा गया था. लेकिन आज मौत से जूझते हुए उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
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लालजी का ऐसा रहा राजनीतिक सफर
लालजी टंडन का जन्म 12 अप्रैल, 1935 में लखनऊ में हुआ था. उन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की है। इसके बाद 1958 में लालजी का कृष्णा टंडन के साथ विवाह हुआ. उनके बेटे गोपाल जी टंडन इस समय उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री हैं. बता दें कि मध्य प्रदेश से पहले लालजी टंडन बिहार के गवर्नर थे.
लालजी अपने शुरुआती जीवन में ही राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़ गए थे. इनका राजनीतिक सफर साल 1960 में शुरू हुआ. टंडन दो बार पार्षद चुने गए और दो बार विधान परिषद के सदस्य रहे. उन्होंने इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन में भी बढ़-चढकर हिस्सा लिया था. 1978 से 1984 तक और 1990 से 96 तक लालजी टंडन दो बार उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के सदस्य रहे। इस दौरान 1991-92 की उत्तर प्रदेश सरकार में वह मंत्री भी रहे.
लालजी टंडन 1996 से 2009 तक लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. सन् 1997 में वह नगर विकास मंत्री रहे. साल 2009 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीति से दूर होने के बाद लखनऊ लोकसभा सीट खाली हो गई. इसके बाद बीजेपी ने लालजी टंडन को ही यह सीट सौंपी. लोकसभा चुनाव में लालजी टंडन ने लखनऊ लोकसभा सीट से जीत हासिल की और संसद पहुंचे.
संघ से जुड़ने के दौरान ही उनकी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उनकी मुलाकात हुई. बताया जाताह है कि लालजी शुरू से ही अटल बिहारी वाजपेयी के काफी करीब थे.लालजी टंडन खुद कहते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में उनके साथी, भाई और पिता तीनों की भूमिका अदा की. वहीं 90 के दशक में प्रदेश में बीजेपी और बीएसपी की गठबंधन सरकार बनाने में भी उनका अहम योगदान माना जाता है.