अस्पतालों के अंदर भरे बेड्स और श्मशान घाटों में बड़ी संख्या में जलती चिताएं बात की गवाही देती हैं कि मध्य प्रदेश के अंदर कोरोना वायरस से किस कदर हालात बिगड़े हुए हैं. राज्य में कोरोना वायरस महामारी की चपेट में हर रोज हजारों लोग आ रहे हैं तो सैकड़ों लोग भी अपनी जान गवां रहे हैं. लेकिन इस बीच सबसे शर्मनाक बात यह है कि मरीजों के लिए जीवनदायनी दवाई के जरिए कुछ डॉक्टर्स अपने लाभ के लिए मुनाफाखोरी में लगे हैं. डॉक्टर्स जेनरिक दवाएं लिखने के बजाय महंगी दवाई मरीजों को लिखते हैं. जिसको लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भी नाराजगी जताई है और सरकार से जवाब तलब किया है.
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ ने डॉक्टरों द्वारा जेनेरिक मेडिसिन न लिखने को लेकर नाराजगी जाहिर की. साथ ही हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार के अलावा ड्रग कंट्रोलर से भी इसको लेकर जवाब मांगा है. कोर्ट ने 7 जून को भारत सरकार व राज्य शासन के ड्रग कंट्रोलर और राज्य शासन को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए तलब किया है. मरीजों के लिए महंगी दवाएं लिखने को लेकर हाईकोर्ट ने शासन से पूछा कि डॉक्टर जेनरिक दवाएं क्यों नहीं लिख रहे हैं और कंपनियों के ब्रांड क्यों लिखे जा रहे हैं.
हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ में एडवोकेट विभोर कुमार ने जेनरिक दवाओं को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी. एडवोकेट विभोर कुमार ने याचिका में कहा कि कोरोना के बीच ब्लैक फंगस जैसी बीमारी भी लोगों को घेर रही है. इस बीमारी से पीड़ित मरीजों को एनफो टेरेसिन बी-50 एमजी इंजेक्शन दिया जाता है, जो दो बार लगाया जाता है. इन दोनों इंजेक्शन की कीमत लगभग 14000 रुपये देनी पड़ती है. डॉक्टरों द्वारा कंपनी और ब्रांच के नाम से इंजेक्शन लिखा जाता है. जबकि यह इंजेक्शन जेनरिक दवाइयों में 269 रुपये का मिल जाता है.
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हाईकोर्ट के सामने याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने ऑनलाइन जेनरिक दवाओं के प्राइस भी रखे. जिसके बाद हाईकोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि दवाई के रेट में इतना अंतर क्यों है. इसके बाद केंद्र और राज्य शासन ने इस मामले पर जवाब देने के लिए समय मांगा, जिस पर याचिकाकर्ता ने आपत्ति जताई. हालांकि हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकार के साथ ड्रग कंट्रोलर नोटिस भेजकर 7 जून को तलब किया है.
HIGHLIGHTS
- जेनेरिक दवाएं न लिखने पर HC नाराज
- केंद्र और राज्य सरकार से मांगा जवाब
- 7 जून को हाईकोर्ट ने जवाब तलब किया