मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्र झाबुआ की मुर्गे की खास किस्म 'कड़कनाथ' (kadaknath) को अब राज्य के अन्य हिस्सों तक पहुंचाने की कवायद चल पड़ी है. राजधानी में जहां खुले तौर पर कड़कनाथ मिलने लगा है तो दतिया में भी लोग तेजी से कारोबार बनाने का प्रयास करने लगे हैं. यहां कृत्रिम विधि से कड़कनाथ के चूजों का उत्पादन किया जा रहा है. आदिवासी अंचल झाबुआ की मुर्गे की खास किस्म कड़कनाथ को अधिक प्रोटीन वाला माना गया है. इसमें 25 प्रतिशत से अधिक प्रोटीन होता है, जबकि अन्य मुर्गियों में प्रोटीन मात्र 18-20 प्रतिशत के बीच होता है. इतना ही नहीं, कड़कनाथ में कोलेस्ट्रोल अन्य सफेद चिकन की तुलना में बहुत कम यानी 0.73 से 1.05 प्रतिशत के बीच होता है. इसका मांस मानव के लिए उपयुक्त 8-18 एमिनो एसिड के उच्चस्तर से परिपूर्ण होता है तथा इसके मांस में विटामिन बी-1, बी-2, बी-6, बी-12, विटामिन सी, विटामिन ई, नियासीन एवं प्रोटीन वसा, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा और निकोटोबीक एसिड भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.
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पशु वैज्ञानिक डा़ॅ रूपेश जैन ने बताया कि दतिया जिले में कड़कनाथ उद्योग के विकास के लिए सबसे ज्यादा जोर कृत्रिम विधि से कड़कनाथ चूजों के उत्पादन के बुनियादी विकास पर दिया जा रहा है. इसके अंतर्गत कृत्रिम विधि से अधिक से अधिक चूजों का उत्पादन कर उन्हें किसानों को मुहैया कराने पर जोर दिया जा रहा है. अब तक जिले के छह किसानों को कड़कनाथ के चूजे उपलब्ध कराए जा चुके हैं.
डा़ॅ जैन के मुताबिक, कड़कनाथ भारत में मिलने वाली एकमात्र कालामासी मुर्गे की नस्ल है. यह भील और भिलाला जनजातीय समुदायों द्वारा पाला हुआ मध्यप्रदेश का एक देशी पक्षी है. कड़कनाथ सामान्यत: मुख्य रूप से जेट ब्लैक, पेंसिल एवं सुनहरा प्रजाति में उपलब्ध है.
Source : IANS