मध्य प्रदेश के दमोह विधानसभा में हुए उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार राहुल लोधी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. इस हार की बड़ी वजह जनता में लोधी और स्थानीय भाजपा के नेताओं के खिलाफ बड़ा असंतोष माना जा रहा है. साथ ही भितरघात ने भी बड़ी भूमिका निभाई है. राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद हुए 28 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में भाजपा ने 19 स्थानों पर जीत दर्ज की थी और कांग्रेस नौ स्थानों पर जीती थी. उसके बाद दमोह से कांग्रेस के तत्कालीन विधायक राहुल लोधी ने भी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया और भाजपा में शामिल हो गए, इसके चलते उपचुनाव हुआ. दलबदल करने के कारण स्थानीय लोग राहुल लोधी से खासे नाराज थे और यह बात चुनावी नतीजों में भी सामने नजर आई.
और पढ़ें: एमपी में चिकित्सकों और जिला अधिकारी के बीच जमकर हुआ बवाल
दमोह बुंदेलखंड का वह जिला है जहां से केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल सांसद हैं. साथ ही यहां से छह बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड पूर्व मंत्री जयंत मलैया के नाम पर है. इतना ही नहीं भाजपा का अपना वोट बैंक भी है उसके बावजूद भाजपा के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा है.
सूत्रों की माने तो पार्टी ने दमोह क्षेत्र से हार के कारणों की रिपोर्ट भी तलब की है, साथ ही समीक्षा भी शुरू कर दी है. प्रारंभिक तौर पर पार्टी के सामने जो बातें आई हैं उनमें भितरघात के साथ नेताओं का कमजोर होता जनाधार भी है, इसलिए संभावना इस बात की जताई जा रही है कि कई नेताओं पर जहां गाज गिर सकती है, वहीं कई ताकतवर नेताओं के कद भी छोटे किए जा सकते हैं.
सूत्रों का कहना है कि भाजपा में इस बात को लेकर खासी चिंता है कि सत्ता और संगठन ने चुनाव जीतने के लिए सारा जोर लगाया और जनमानस के मन को टटोलने की हर संभव कोशिश की. उसके बाद पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है.
इस हार के लिए दमोह जिले के तमाम कददावर नेताओं की निष्क्रियता, जातिवादी राजनीति और जनमानस में घटते उनके प्रभाव को माना जा रहा है. पार्टी भी दमोह के जरिए यह संदेश देने की कोशिश कर सकती है कि जो नेता भी जनता से दूरी बढ़ाएंगे और उनके खिलाफ असंतोष होगा ऐसों का कद कम किया जाएगा चाहे वह कितना भी ताकतवर और प्रभावशाली नेता क्यों न हो .