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Buxwaha Forest: बक्सवाहा के जंगल को बचाने के लिए लामबंदी तेज

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगलों को बचाने की लामबंदी तेज हो गई है. देश के भर के तमाम पर्यावरण प्रेमी अगले माह तीन दिवसीय कार्यक्रम 'अगस्त पर्यावरण क्रांति' का आयोजन करने पर विचार कर रहे हैं.

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Vineeta Mandal
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Buxwaha forest( Photo Credit : (फोटो-Ians))

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मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगलों को बचाने की लामबंदी तेज हो गई है. देश के भर के तमाम पर्यावरण प्रेमी अगले माह तीन दिवसीय कार्यक्रम 'अगस्त पर्यावरण क्रांति' का आयोजन करने पर विचार कर रहे हैं. बक्सवाहा के जंगल में हीरा के खनन का काम एक निजी कंपनी के हाथों में सौपा जा रहा है. इसके खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है, विरोध तेज हो रहा है तो मामला न्यायालय तक पहुंच चुका है. अब लोग जंगल को बचाने के लिए एकजुटता दिखाने की कोशिश में लग गए हैं.

बकसवाहा जंगल बचाओ अभियान से नाता रखने वाले झारखण्ड के कमलेश सिंह और बिहार से डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने जंगलों का जायजा लिया. जंगल को बचाने के लिए देशभर के पर्यावरण प्रेमी इसी माह बक्सवाहा में जुटने वाले थे, मगर स्थानीय लोगों के परामर्श पर तीन दिवसीय कार्यक्रम में सात से नौ अगस्त तक आयोजित करने पर मंथन हो रहा है. यह तीन दिवसीय कार्यक्रम 'पर्यावरण अगस्त क्रांति' के बैनर तले होगा.

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पर्यावरण अगस्त क्रांति मे मध्यप्रदेश सहित बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, पंजाब, उड़ीसा, छतीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के पर्यावरण संरक्षकों सहित 170 से अधिक संस्थाओं का बक्सवाहा जंगल बचाने के लिए आना तय हुआ है. तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में प्रथम दिन सात अगस्त को स्थानीय एवं आगन्तुक पर्यावरण प्रेमियों के साथ सामूहिक बैठक कर सभी का मंतव्य और भविष्य के लिए देश के सभी जंगलों के संरक्षण सहित, पर्यावरण के अन्य गम्भीर विषयों की चर्चा की जाएगी, आठ अगस्त को बक्सवाहा जंगल जागरूकता अभियान चलाया जाएगा, तीसरे एवं अंतिम दिन आठ अगस्त को पोस्ट कार्ड अभियान, जागरूकता अभियान, ज्ञापन सहित मानव श्रंखला बनाई जाएगी.

छतरपुर जिले के बक्सवाहा में हीरो का भंडार है और यहां लगभग 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे हो सकते हैं. इसकी कीमत कई हजार करोड़ आंकी गई है. जिस निजी कंपनी ने हीरे खनन का काम लेने में दिलचस्पी दिखाई है, वह इस इलाके की लगभग 382 हेक्टेयर जमीन की मांग कर रही है. ऐसा अगर होता है तो इस इलाके के लगभग सवा दो लाख वृक्षों पर असर पड़ेगा.

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