मंगलवार को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल का 11 साल पूरा हो गया है। पूरे राज्य में जश्न मनाने की तैयारी चल रही है। शिवराज समर्थक चाहते हैं कि 2018 का विधानसभा चुनाव भी इनके नेतृत्व में ही लड़ा जाए।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि आम आदमी के मुख्यमंत्री की है। शायद यही वजह है कि 2003 के बाद से अब तक कांग्रेस राज्य में सत्ता का सुख नहीं देख पाई है।
शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के सीहोर ज़िले के एक छोटे से गांव के किसान परिवार से आते हैं। उनके परिवार की इससे पहले कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही थी। ऐसे में उनके लिए चुनौती आसान नहीं थी।
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शिवराज सिंह चौहान का जन्म 5 मार्च 1959 में मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में नर्मदा नदी के किनारे जैत नाम के एक छोटे से गांव में हुआ था।
जानने वाले बताते हैं कि शिवराज को नदी में तैरने का बहुत शौक है। वे आज भी गांव आते हैं तो नर्मदा में कूद जाते हैं। शिवराज की चौथे दर्जे तक की पढ़ाई जैत गांव में ही हुई। इसके बाद वो भोपाल आ गए और चाचा के साथ रहते हुए अपनी पढ़ाई शुरू कर दी। लेकिन गांव से उनका मोह कम नहीं हुआ, वो पढ़ाई के दौरान बीच-बीच में गांव आया करते थे।
समाज के पिछड़े वर्ग के लोगों को न्याय दिलाने के लिए उन्होंने अपने पिता प्रेम सिंह चौहान के ख़िलाफ़ ही बग़ावत कर दी थी। उस वक़्त उनकी उम्र महज़ 16-18 साल थी उनके पिता ने भी इस बात की पुष्टि की है। पिता प्रेम सिंह ने बताया, 'शिवराज कहता था कि गांव में इतनी मजदूरी में काम मत करवाओ।'
शिवराज के लिए नेतागीरी की पहली पाठशाला गांव में ही शुरू हुई। आगे चल कर वो मज़दूरों के नेता बने।
इस कहानी को याद करते हुए शिवराज ख़ुद भी बताते हैं, 'मजदूरों को तब ढाई पाई अनाज ही मिलता था। मुझे लगता था कि दिनभर की ये मज़दूरी बहुत कम है। उन्हें कम से कम पांच पाई मिलना चाहिए। जो चरवाहे होते थे वो सुबह छह बजे से शाम तक मेहनत करते थे। मुझे लगता था कि उनके साथ न्याय नहीं हो रहा है। इसलिए मैंने मजदूरों की बैठक की और कहा कि ज़ुलूस निकालो और मांग करो। उनके साथ हमने जब ज़ुलूस निकाला तो मज़दूरी देने वाले को स्वाभाविक कष्ट हुआ। उनमें हमारा परिवार भी था, इसलिए मेरी पिटाई भी हुई। चाचाजी ने मुझे पीटा था। लेकिन मुझे लगा ये गलत है और मैंने गलत का विरोध किया।'
इस आंदोलन के बाद मज़दूरों को तो उनका हक़ मिल गया, लेकिन शिवराज को पशुओं का गोबर उठाने और चारा डालने की सज़ा मिली।
शिवराज सिंह चौहान ने बचपन और युवा काल के दौरान और भी कई साहसिक कारनामे किये हैं।
अपने स्कूल टाइम के दौरान शिवराज स्कूल ट्रिप पर बॉम्बे और गोवा घूमने निकले थे। जब सभी बच्चे गोवा से लौट रहे थे तो पहाड़ी ढलान पर जैसे ही बस पहुंची बस ड्राइवर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा। उसने बताया कि बस का ब्रेक फेल हो गया है, इसलिए सभी लोग कूद कर अपनी जान बचाएं। सब लोग समझ नहीं पा रहे थे की अब क्या करें ? इतनी ही देर में शिवराज ने गेट खोला और बस से बाहर कूद गए।
गाड़ी रफ़्तार में थी इसलिए वो गिर गए, लेकिन फ़ौरन ही उठकर बस के आगे भागने लगे। फिर कुछ और लड़के भी कूदे। ड्राइवर ने बस की रफ़्तार धीमी की। फिर सभी लड़कों ने मिलकर बस के आगे पत्थर रख दी, जिसकी वजह से गाड़ी रुक गयी और सब लोग सुरक्षित बस से बाहर निकल आये।
सियासत में पूरी तरह रमने की वजह से शिवराज अपनी शादी काफी दिनों तक टालते रहे। पिता ने हारकर उनके छोटे भाई और बहन की शादी पहले ही कर दी। आखिरकार 1992 में 33 साल की उम्र में बहन की ज़िद पर शिवराज शादी के लिए राज़ी हुए।
इस बारे में उनकी पत्नी साधना सिंह बताती हैं कि ये मुझे देखने आए थे। इनकी तरफ से प्यार हो गया।
मम्मी पापा ने देखा ठीक है, अच्छा लड़का है। शिवराज तब नेता और सांसद होने की वज़ह से राजनीति में काफी सक्रिय थे। इन्होंने मुझे एक लेटर लिखा, जिसमें अपनी भावनाएं व्यक्त की। वो भावनाएं मैं नहीं बताऊंगी। उसके बाद शादी हो गई।
शिवराज सिंह चौहान के जानने वाले बताते हैं कि उनका व्यवहार आम जनता और परिवार के लिए एक सरीखा है। हालांकि शिवराज इसके लिए अपनी पत्नी साधना सिंह का आभार व्यक्त करते हुए कहते हैं, अगर उनका समर्थन नहीं मिला होता तो जान कल्याण के लिए इतनी निष्ठा से काम करना मुश्किल होता।
अपने सरल व्यवहार की वजह से ही शिवराज 11 साल बाद भी जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं की पहली पसंद हैं।
प्रदेश भाजपा प्रवक्ता उमेश शर्मा ने कहा कि हम अगला विधानसभा चुनाव शिवराज के नेतृत्व में ही लड़ेंगे। कांग्रेस के किसी भी नेता का क़द शिवराज के घुटने के बराबर भी नहीं है।
शिवराज सिंह चौहान 29 नवंबर 2005 से ही मुख्यमंत्री का ओहदा संभाल रहे हैं। कांग्रेस 2003 में चुनाव हारने के बाद से अब तक वापसी नहीं कर पायी है। शिवराज से पहले वर्ष 2003 से 2005 के बीच उमा भारती और बाबूलाल गौर सूबे की भाजपा सरकार के मुखिया थे।
Source : News Nation Bureau