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मीसाबंदियों की पेंशन, 'वंदे मातरम्', कमलनाथ की मुसीबतों का 'खलनायक' कौन?

मध्य प्रदेश में डेढ़ दशक बाद कांग्रेस को सत्ता की कमान मिली है, लोक लुभावन चुनावी वादे पूरे करने के अभियान में कांग्रेस तेजी ला पाती कि उससे पहले ही विवाद जोर पकड़ने लगे हैं.

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Drigraj Madheshia
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मीसाबंदियों की पेंशन, 'वंदे मातरम्', कमलनाथ की मुसीबतों का 'खलनायक' कौन?

मुख्यमंत्री कमलनाथ का फाइल फोटो

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मध्य प्रदेश में डेढ़ दशक बाद कांग्रेस को सत्ता की कमान मिली है, लोक लुभावन चुनावी वादे पूरे करने के अभियान में कांग्रेस तेजी ला पाती कि उससे पहले ही विवाद जोर पकड़ने लगे हैं. विपक्षी दल को हाथोंहाथ ऐसे मुद्दे सौंपे जा रहे हैं जो मुख्यमंत्री कमलनाथ की मुसीबत तो बढ़ाएंगे ही, साथ ही सरकार की छवि पर भी असर डालेंगे, इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता.राज्य की सत्ता में बदलाव 11 दिसंबर को ही हो गया था, मगर बतौर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कमान 17 दिसंबर को संभाली. उन्होंने शपथ लेते ही किसानों की कर्जमाफी सहित कई बड़े फैसले लिए. उसके बाद मंत्रिमंडल चयन, विभाग वितरण, नए मुख्य सचिव के चयन में काफी माथापच्ची हुई.

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सरकार का काम रफ्तार पकड़ पाता कि उससे पहले वल्लभ भवन के उद्यान में होने वाले 'वंदे मातरम्' पर अस्थायी रोक का विवाद पनपा, मीसाबंदी सम्मान निधि (पेंशन) के फिर से निर्धारण और अब भोपाल के पुल पर लगी उद्घाटन पट्टिका पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम पर रंग पोते जाने का मामला गरमा गया है.

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भाजपा के हमलों के बाद सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा और सरकार ने कहा कि अब 'वंदे मातरम्' को नए स्वरूप में किया जाएगा, मगर उसके पास यह जवाब नहीं है कि आखिर एक तारीख को होने वाला सामूहिक 'वंदे मातरम्' वल्लभ भवन के उद्यान में आखिर हुआ क्यों नहीं. कहा तो यह जा रहा है कि उस दिन नए मुख्य सचिव के तौर पर एस.आर. मोहंती को पदभार संभालना था और नौकरशाही संशय में थी कि अगर 'वंदे मातरम्' कराया तो कहीं नई सरकार नाराज न हो जाए. बस, इसीलिए 13 साल की परंपरा आगे नहीं बढ़ी.

सामूहिक 'वंदे मातरम्' पर हुई किरकिरी से सरकार उबर नहीं पाई है कि मीसाबंदियों की पेंशन का मामला उलझ गया. एक उलझाऊ आदेश सामने आया, इस आदेश के बाद मीसाबंदियों को दिसंबर माह की पेंशन नहीं मिल पाई है. इसके मसले को भाजपा ने हाथोहाथ लिया और भोपाल में मीसाबंदियों की बैठक कर डाली. इतना ही नहीं, मीसाबंदियों ने आंदोलन का ऐलान तक कर दिया है.

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सरकार की ओर से सामान्य प्रशासन मंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने कहा है कि मीसाबंदी में जो पेंशन मिल रही थी, उनमें 90 प्रतिशत लोग भाजपा से जुड़े हैं, ये लोग विभिन्न धाराओं में जेल गए थे. इशारों-इशारों में उन्होंने मीसा की तुलना एनएसए से कर डाली.

अभी ये मामले जोर पकड़े ही थे कि असामाजिक तत्वों ने राजधानी के ओवरब्रिज की उद्घाटन पट्टिका पर किसी ने पीला रंग पोत दिया. इससे तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम दब गया. इसे भाजपा ने मुद्दा बना दिया है. भाजपा इसे संकीर्ण मानसिकता का प्रतीक बता रही है.

प्रशासनिक हलकों में 'वंदे मातरम्' और मीसाबंदी पेंशन के मामलों के बेवजह तूल देने वाला बताया जा रहा है. साथ ही तर्क दिया जा रहा है कि अगर 'वंदे मातरम्' हो जाता तो क्या नुकसान होता और दूसरा मीसाबंदी पेंशन को जारी रखते हुए जांच कराई जाती तो सरकार पर इतना तो बोझ न आता कि आर्थिक व्यवस्था चौपट होती.

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कांग्रेस से जुड़े कुछ लोग तो इन दोनों मामलों के पीछे प्रशासनिक साजिश की ओर इशारा कर रहे हैं. कांग्रेस के सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किसान कर्जमाफी सहित जो फैसले लेने शुरू किए थे, उनका अभी पार्टी को श्रेय भी नहीं मिला कि भाजपा और दूसरे वर्ग आंदोलन की राह पकड़ने लगे हैं. यह स्थिति सरकार के लिए आने वाले दिनों में बड़ी चुनौती बन सकती है, इसे नकारा नहीं जा सकता.

Source : IANS

Kamal Nath CM of Madhya Pradesh vande mataram misabandi pension
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