मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस की नई गाइडलाइन से पार्षद बनने का सपना देख रहे कई धुरंधरों के अरमानों पर पानी फिर गया है. हालांकि, कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस फैसले से संगठन को मजबूती मिलेगी. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सियासत का ऐसा दांव चला है कि विपक्ष भी सोचने पर मजबूर हो गया है. दरअसल, रविवार को मध्य प्रदेश कांग्रेस ने नगरीय निकाय चुनाव को लेकर एक गाइडलाइन जारी की है, जिसमें कार्यकर्ता को उसी वॉर्ड्स से चुनाव लड़ने की अनुमति होगी जिसका वह मतदाता होगा. इससे कांग्रेस के उन कार्यकर्ताओं को बड़ी राहत मिली है, जो अपने ही वार्ड में चुनाव की तैयारी तो कर रहे थे, लेकिन उन कार्यकर्ताओं से परेशान थे, जो अपना वॉर्ड छोड़कर दूसरों से टिकट मांग रहे थे..
नेताओं पर दिखा आदेश का असर
दरअसल, किसी भी संभावित प्रत्याशी को अपना वॉर्ड छोड़ने की नौबत तब आती है, जब आरक्षण में वॉर्ड किसी दूसरी श्रेणी में रिजर्व हो जाता है. ऐसे में वे संभावित कार्यकर्ता अपना वॉर्ड छोड़कर दूसरे वार्डों में टिकट पाने की कोशिश करते हैं, लेकिन ग्वालियर में कांग्रेस के तीन बार पार्षद रहे आनंद शर्मा जैसा दरिया दिल शायद ही किसी कांग्रेस कार्यकर्ता का हो. आनंद शर्मा कांग्रेस के ऐसे कार्यकर्ता हैं, जो अपने वॉर्ड से तीन बार पार्षद रहे और उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के भतीजे दीपक वाजपेयी को हराया था, लेकिन इस बार जैसे ही उनका वॉर्ड सामान्य से हटकर आरक्षित हुआ तो उन्होंने यह घोषणा कर दी कि वे अब चुनाव नहीं लड़ेंगे और युवाओं को आगे आना चाहिए.
नई गाइडलाइंस से कार्यकर्ता है खुश
चतुर्भुज धनोलिया वार्ड 21 से पार्षद रहे और वर्तमान में कांग्रेस के जिला कार्यकारी अध्यक्ष हैं. कल्लू दीक्षित नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष रहे और वार्ड 12 से पार्षद थे. विकास जैन वार्ड 9 से पार्षद थे. कैलाश चावला वॉर्ड 50 में पार्षद रहे अब 49 से टिकट मांग रहे थे. बलराम ढींगरा वार्ड 47 से अपने भतीजे का टिकट मांग रहे थे. यानी ग्वालियर नगर निगम में कांग्रेस से 10 से 12 ऐसे पूर्व पार्षद थे, जो अपना वॉर्ड बदलना चाहते थे, लेकिन अब नहीं बदल पाएंगे. अब अगर कांग्रेस की नई गाइडलाइंस की बात करें तो ज्यादातर कार्यकर्ता इस नए आदेश से काफी खुश हैं, क्योंकि अब दूसरे वार्ड में चुनाव लड़ने पर पार्टी की तरफ से पाबंदी लगा दी गई है. इस पहल से न केवल स्थानीय कार्यकर्ता को बल मिलेगा, बल्कि वह संगठन बोर्ड स्तर पर मजबूत बनेगा. बहरहाल, यह देखना होगा कि कांग्रेस की इस गाइडलाइन का असर आने वाले चुनाव में कितना दिखता है. हालांकि, इससे पार्टी के वार्ड स्तर पर मजबूत होने की संभावना जताई जा रही है.
HIGHLIGHTS
- पार्षद बनने का सपना देख रहे कई धुरंधरों के अरमानों पर फिरा पानी
- अपने ही वार्ड से चुनाव की तैयारी तो कर रहे कार्यकर्ताओं के चेहरे खिले
- कमलनाथ ने सियासी दांव से विपक्ष को भी सोचने पर कर दिया मजबूर