मध्यप्रदेश में कांग्रेस इकाई के नए अध्यक्ष पर फिलहाल कोई फैसला नहीं हो पाया है, जिससे प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास ही रहेगी. राज्य में लगभग डेढ़ दशक बाद सत्ता में आई कांग्रेस नए अध्यक्ष की तलाश कर रही है. प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ वर्तमान में मुख्यमंत्री भी हैं और वे विधानसभा चुनाव के बाद से कई बार पार्टी हाईकमान के सामने नया अध्यक्ष बनाने का अनुरोध कर चुके हैं. इतना ही नहीं, वह अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश भी कर चुके हैं. इसके बाद से ही नए अध्यक्ष को लेकर पार्टी में मंथन का दौर जारी है.
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कांग्रेस के भीतर चल रही खींचतान का ही नतीजा है कि एक साथ 10 से ज्यादा नेताओं के नाम पार्टी अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हो गए हैं. इनमें प्रमुख रूप से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व मंत्री मुकेश नायक, वर्तमान मंत्री उमंग सिंघार के नाम शामिल हैं. इसके अलावा ओमकार सिंह, मरकाम कमलेश्वर पटेल, सज्जन वर्मा, बाला बच्चन, पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन और पूर्व महिला अध्यक्ष शोभा ओझा के नाम की चर्चा भी जोरों पर है.
मध्यप्रदेश के अध्यक्ष बनने को लेकर 'एक अनार सौ बीमार' की कहावत पूरी तरह से फिट होती दिख रही है. यही कारण है कि राज्य में लगभग एक पखवाड़े से नए अध्यक्ष को लेकर खींचतान का दौर जारी है. इसी खींचतान के बीच पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा मंत्रियों को लिखे गए खत के वायरल होने के बाद विवाद बढ़ गया. वन मंत्री उमंग सिंघार ने पूर्व मुख्यमंत्री पर कई गंभीर आरोप लगाए और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया को पत्र भी लिखा.
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वन मंत्री उमंग सिंघार के बयान के बाद राज्य के कई मंत्रियों और नेताओं ने भी विभिन्न तरीके से बयानबाजी की, जिससे यह संदेश जाने लगा कि राज्य में कांग्रेस नेताओं में अब भी दूरियां बनी हुई हैं और इन स्थितियों में नए अध्यक्ष का चयन पार्टी के लिए अच्छा नहीं होगा. इसी के चलते नए अध्यक्ष के नाम का फैसला फिलहाल टाल दिया गया है. राज्य के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा कहते हैं कि मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास ही अध्यक्ष पद की कमान रहेगी. उनका कहना है कि आगामी समय में होने वाले झाबुआ उप-चुनाव, राज्य के नगरीय निकाय चुनाव और महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों तक कमलनाथ ही पार्टी प्रमुख बने रहेंगे, इसके लिए पार्टी निर्णय ले चुकी है.
वहीं पार्टी सूत्रों का कहना है कि दिल्ली इकाई का अध्यक्ष तय होने के बाद मध्य प्रदेश के अध्यक्ष के नाम का ऐलान संभव है. सूत्रों का कहना है कि राज्य में कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत नहीं है और वह बाहरी समर्थन से चल रही है. लिहाजा पार्टी हाईकमान ऐसा कोई फैसला नहीं करना चाहेगी, जिससे असंतोष बढ़ने की संभावना हो और राज्य सरकार पर कोई नकारात्मक असर पड़े.
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