जिस पंचायत को कभी राष्ट्रपति से आदर्श ग्राम पंचायत (Gram Panchayat) का अवॉर्ड मिला आज उसी पंचायत में एक युवक गरीबी में खुद हल में लगकर अपने खेत जोत रहा है. आदिवासी बाहुल्य झाबुआ (Jhabua) जिले में अब भी कई गरीब परिवार ऐसे हैं, जिन्हें सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला और ना ही स्थानीय स्तर पर उनकी कोई सुनवाई होती है. मजबूरन उन्हें अपनी गरीबी के साथ ही जीने पर मजबूर होना पड़ता है.
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पेटलावद जनपद पंचायत की आदर्श ग्राम पंचायत सारंगी से एक मामला सामने आया है. एक युवक हल में खुद बेल की जगह अपने खेत की हकाई-जुताई करने में जुट गया है. इसमें उसकी पत्नी भी उसका साथ दे रही है. युवक का कहना है कि गरीब होने के कारण उसकी बैल खरीदने की हैसियत नहीं है. सारंगी निवासी महेश मालवीय अपने एक छोटे से जमीन के टुकड़े पर हल-बखर चलाने के लिए बैल बनकर कार्य कर रहा है. पत्नी ममता भी उसके साथ खेत जोतने के काम में लगी है. महेश के माता पिता की बचपन में ही मौत हो गई थी. महेश को झाबुआ के बलराम कसारा ने गोद लिया और उसकी परवरिश की.
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झोपड़ी में रहने को मजबूर
महेश के मुताबिक बलराम ने उसे घर से निकाल दिया है. इसके बाद से वह अपने दादा की जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर पत्नी के साथ झोपड़ी बनाकर रह रहा है. न उसके पास पक्का घर है और ना ही शौचालय की सुविधा. किसी तरह वह मजदूरी कर जिंदगी गुजार रहा है. लॉकडाउन के बाद उसके पास काम भी नहीं बचा है. महेश व उसकी पत्नी ममता ने फैसला किया की वह खुद अपनी मेहनत से फसल तैयार करेंगे और महेश खेत जोतने के लिए खुद बेल बन गया. इसमें उसकी पत्नी मदद कर रही है.
ग्राम पंचायत ने युवक को बताया अपात्र
वहीं दूसरी तरफ इस मामले में पंचायत के सचिव व रोजगार सहायक ने बताया कि कागजों पर महेश अपात्र है. इसी के कारण उसे योजनाओं का लाभ नहीं दिया जा रहा है. उसे लाभ दिलाने का हर संभव प्रयास किया जाएगा.
Source : News Nation Bureau