बुंदेलखंड के बक्स्वाहा में हीरा खनन के लिए जंगल को काटे जाने की चल रही प्रक्रिया के विरोध का दौर जारी है. जंगल को बचाने संत समाज भी आगे आने लगा है. चित्रकूट प्रमुख द्वार के महंत स्वामी मदन गोपाल दास ने बक्स्वाहा के बम्हौरी गांव में पर्यावरण चौपाल लगाई और वृक्ष कटाई को रोकने पर जोर दिया. साथ ही वृक्षों से लिपटकर उन्हें बचाने का संकल्प लिया. बम्होरी में लगाई गई चौपाल में महंत स्वामी मदन गोपाल दास ने कहा कि वर्तमान समय में कोविड-19 के दौरान पेड़ का महत्व समझ में आ गया है. इसलिए जरुरी है कि बक्स्वाहा जंगल को बचाया जाए. इस संभावित कटाई को हर हाल में रोकना होगा. इस लड़ाई में जब तक स्थानीय निवासी आगे नहीं आएंगे तब तक यह लड़ाई अधूरी मानी जाएगी.
पर्यावरण प्रेमी रामबाबू तिवारी ने कहा कि यह पर्यावरण बचाओ अभियान लगातार गांव स्तर में चलाया जाएगा. बक्स्वाहा के जंगल की कटाई स्थानीय मुद्दा नहीं है यह राष्ट्रीय मुद्दा है, इसमें स्थानीय लोगों के साथ ही राष्ट्रीय स्तर के सभी पर्यावरण प्रेमी जन मानस को आगे आना होगा तभी सरकार बैकफुट में जाएगी. जिस प्रकार से सोशल मीडिया के माध्यम से इस लड़ाई को एक गति दी गई है, इसी प्रकार से गांव गांव में पर्यावरण बचाने को लेकर अन्नदान मुहिम चलाई जाएगी.
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स्थानीय निवासी दीपक बलेरा ने कहा कि वर्तमान समय में कंपनी के द्वारा यहां के स्थानीय लोगों को लालच दिया जाता है रोजगार-विकास के नाम को लेकर, इसलिए यहां के स्थानीय लोगों के बीच जागरुकता अभियान चलाया जाना जरुरी है.
कार्यक्रम का संचालन करते मयंक जैन ने बताया कि जिस प्रकार से सोशल मीडिया में लड़ाई लड़ी गई है, उसी प्रकार से यह लड़ाई रणनीति बनाकर लड़ना होगी, जिससे वृक्षों को बचाया जा सके. कार्यक्रम में प्रमुख रूप से रोहित बलेरा राकेश लोधी, राजेश कुमार, संतराम दशरथ लाला आदि मौजूद रहे.
इस चैपाल से पहले जंगल में पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन चलाया गया. सभी ने पेड़ों से लिपटकर उन्हें बचाने का संकल्प लिया. इससे पहले नर्मदा नदी के संरक्षण की लड़ाई लड़ने वाले समर्थ भैया जी भी इस क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं.
ज्ञात हो कि बक्स्वाहा के जंगल में हीरे का भंडार पाए जाने के बाद खनन का काम एक कंपनी को सौंपा जाने की तैयारी है. इस कंपनी को लगभग 382 हेक्टेयर वन क्षेत्र लीज पर दिया जाने वाला है. यह घना और समृद्ध जंगल तो है ही साथ में यहां से लोगों की आजीविका चलती है. इससे संस्कृति भी जुड़ी हुई है. यही कारण है कि सरकार की कोशिशों का विरोध शुरू हो गया है.
बक्सवाहा के जंगल हीरा खनन के लिए निजी कंपनी को सौंपे जाने की प्रक्रिया के खिलाफ मामला एनजीटी में भी पहुंच गया है. जहां इस पर सुनवाई होनी है.