महाराष्ट्र (Maharashtra) में उद्धव ठाकरे (Udhav Thackeray) की सरकार बने अभी तीन महीने भी नहीं हुए हैं और गठबंधन (Maha Vikas Aghadi) में दरार पड़ गई है. उद्धव ठाकरे की सरकार बनाने वाले सूत्रधार NCP नेता शरद पवार (Sharad Pawar) सरकार से नाराज चल रहे हैं. माना जा रहा है कि कुछ महत्वपूर्ण मामलों में उद्धव ठाकरे की सरकार ने शरद पवार की एक न सुनी, जिससे वे तिलमिला गए हैं. यहां तक कि शरद पवार ने पत्रकारों के सामने भी अपनी नाराजगी जाहिर कर दी. इसी नाराजगी में उन्होंने अपनी पार्टी के सभी 16 मंत्रियों को तलब किया है. हालांकि, आनन-फानन में बुलाई गई बैठक को लेकर पार्टी ने कुछ नहीं कहा है, लेकिन इसे लेकर अटकलों का बाजार गर्म है.
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भीमा कोरेगांव मामलों की जांच एनआईए को दिए जाने से शरद पवार बेहद नाराज चल रहे हैं. साथ ही महाराष्ट्र सरकार द्वारा NPR (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) को मंजूरी दिए जाने से मराठा क्षत्रप की भौंहें तनी हुई है. किसी भी मामले की जांच को केंद्रीय एजेंसी को सुपुर्द करने का अधिकार मुख्यमंत्री के पास होता है, लेकिन उद्धव ठाकरे की तरफ से भीमा कोरेगांव दंगों की जांच एनआईए को दिए जाने को लेकर प्रत्यक्ष रूप से कोई विरोध सामने नहीं आया. इसलिए वे उद्धव ठाकरे की सरकार से बेहद नाराज हैं. शरद पवार ने रविवार को एल्गार परिषद मामले में आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र की पूर्व फडणवीस सरकार 'कुछ छुपाना' चाहती थी, इसलिए मामले की जांच केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दी है. माओवादियों से कथित संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मामले की पड़ताल विशेष जांच दल (SIT) को सौंपे जाने की पहले ही मांग कर चुके शरद पवार ने कहा कि केंद्र सरकार को जांच एनआईए को सौंपने से पहले राज्य सरकार को भरोसे में लेना चाहिए था.
शरद पवार ने पूछा कि क्या सरकार के खिलाफ बोलना 'राष्ट्रविरोधी' गतिविधि है?. पवार ने कहा कि जिस समय कोरेगांव-भीमा हिंसा हुई, उस समय फडणवीस सरकार सत्ता में थी. मामले की जांच केंद्र के विशेषाधिकार के दायरे में आती है लेकिन उसे राज्य को भी भरोसे में लेना चाहिए था. उन्होंने कहा कि कोरेगांव-भीमा और एल्गार परिषद पुणे में हिंसा से एक दिन पहले हुए थे और दोनों अलग मामले हैं.
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हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने कहा था कि एल्गार परिषद मामले की जांच एनआईए को सौंपे जाने से उसे कोई एतराज नहीं है. हालांकि, मोदी सरकार ने जब इस मामले को एनआईए को सौंपा था, तब उद्धव ठाकरे की सरकार ने इसकी तीखी आलोचना की थी. यह मामला पुणे के शनिवारवाड़ा में 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद संगोष्ठी में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने से जुड़ा है. पुलिस ने दावा किया था कि इन भाषणों के चलते ही अगले दिन जिले के कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई थी. पुलिस ने दावा किया था कि संगोष्ठी के आयोजन को माओवादियों का समर्थन था. जांच के दौरान पुलिस ने वामपंथी झुकाव वाले कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था.
Source : News Nation Bureau