बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने कहा है कि जब सरकार किसी सार्वजनिक कार्य के लिए भूमि का अधिग्रहण करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करती है, तो यह सुनिश्चित करना भी उसका दायित्व है कि भूमालिकों को उसका मुआवजा मिले. न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ ने सक्षम प्राधिकारी द्वारा तय की गई मुआवजा राशि को चुनौती देने वाली भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) की याचिका 17 नवंबर को खारिज कर दी.
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एनएचएआई को 2,700 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर पर मुआवजा देने का आदेश
अदालत ने एनएचएआई को निर्देश दिया कि वह उन दो महिलाओं को मुआवजे की राशि दे, जिनकी जमीन का सार्वजनिक कार्यों के लिए अधिग्रहण किया गया है. एनएचएआई ने उपायुक्त (भूमि अधिग्रहण) नासिक के पांच जनवरी, 2017 के आदेश को खारिज किए जाने का अनुरोध किया था. इस आदेश के तहत, नासिक के राहुद गांव में 3,000 वर्ग मीटर जमीन की मालिक मालतीबाई पवार और 1,900 वर्ग मीटर जमीन की मालिक उज्ज्वला थोराट को मुआवजा देने को कहा गया था. एनएचएआई ने राष्ट्रीय राजमार्ग तीन को चौड़ा करने के मकसद से उनकी भूमि के अधिग्रहण का प्रस्ताव रखा था. एनएचएआई को 2,700 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर पर मुआवजा देने का आदेश दिया गया था, जिसे बाद में कम करके 2,200 रुपए प्रति वर्ग मीटर कर दिया गया था.
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नासिक सत्र अदालत ने अक्टूबर 2018 में इस राशि को बरकरार रखा था, जिसके बाद एनएचएआई ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. न्यायमूर्ति जाधव ने कहा कि सरकार जब भूमालिकों की इच्छा के विरुद्ध सार्वजनिक कार्यों के लिए भूमि अधिग्रहण के अपने अधिकार का इस्तेमाल करती है, तो यह सुनिश्चित करना सरकारी निकाय का दायित्व बनता है कि जिस व्यक्ति की जमीन का अधिग्रहण किया गया उसे कानूनी प्राधिकारी द्वारा घोषित मुआवजा राशि दी जाए. पीठ ने याचिका खारिज कर दी, लेकिन इसके क्रियान्वयन पर 12 जनवरी 2021 तक रोक लगा दी, ताकि एचएचएआई को अदालत के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने का समय मिल सके.