नाबालिग की गवाही पर बांबे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा है कि नाबालिग बच्ची घटना के समय 4 वर्ष की थी और वह ठीक तरह से बयान देने और उस घटना को याद करने में असक्षम है. इसलिए उसकी गवाही विश्वसनीय नहीं मानी जा सकती है. नाबालिग बच्ची के यौन शोषण से जुड़े एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट में दोषी करार दिए व्यक्ति को बरी किया. हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठाए.बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाबालिग से यौन दुराचार के मामले में दोषी एक व्यक्ति को पीड़ित नाबालिग बच्ची के बयान से संतुष्ट नहीं होने की वजह से बरी कर दिया.
कोर्ट ने कहा कि नाबालिग बच्ची होने के कारण ना तो वह उस घटना को याद करने में सक्षम है और ना ही सवालों के सही जवाब दे पा रही है इसलिए उसकी गवाही विश्वसनीय नहीं मानी जा सकती है. इससे पहले स्पेशल कोर्ट ने प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट के तहत 4 वर्षीय बच्ची से यौन दुराचार के आरोप में उक्त व्यक्ति को दोषी करार दिया था. उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठाए.
जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई ने कहा कि ट्रायल कोर्ट में सुनवाई के दौरान जज ने क्या पीड़िता से यह जानने के लिए सवाल किया था कि क्या वह उससे पूछे गए सवालों को समझने में सक्षम है और उसका तर्कसंगत जवाब दे रही है. उन्होंने कहा कि न्यायाधीश पीड़ित बच्ची की योग्यता का मूल्यांकन करने और उसकी गवाही देने की क्षमता के बारे में उसकी संतुष्टि दर्ज करने में सफल नहीं रहे.
इस मामले में बरी व्यक्ति पेशे से पेंटर है. जिस पर 2017 में नाबालिग बच्ची के यौन उत्पीड़न का आरोप था. इसके बाद कोर्ट ने उसे 5 साल की सजा सुनाई थी और जुर्माना भी लगाया था. अभियोजन पक्ष ने कहा कि 11 मई 2017 को नाबालिग बच्ची ने अपने साथ हुई ज्यादाती के बारे में मां को बताया था. इस आधार पर पुलिस ने केस दर्ज करके पेंटर और उसके साथ एक अन्य व्यक्ति को आरोपी बनाया था.
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस प्रभु देसाई ने यह पाया कि, अभियोजन पक्ष की दलील सिर्फ नाबालिग बच्ची के बयान पर आधारित है और जिस समय यह घटना हुई थी. वह महज 4 वर्ष की थी. जब कोर्ट में उसे गवाही देने के लिए लाया गया था तो उसकी उम्र 6 साल थी.
कोर्ट ने कहा कि यह तय है कि बच्ची की गवाही पर दोषरोपण हो सकता है. बशर्ते की बच्ची गवाह के तथ्यों को पेश करने में सक्षम हो. हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि गवाह की उम्र कम थी इसलिए जज को बच्ची की बौद्धिक क्षमता लगाने और केस से जुड़े तथ्यों को पेश करने के लिए बच्ची गवाही को लेकर संतुष्ट होना चाहिए था.
इस मामले में जस्टिस प्रभु देसाई ने जब पीड़ित बच्ची के बयान की जांच और कहा कि, बच्ची के बयान को दर्ज किया गया लेकिन वह तथ्यों को याद नहीं कर पा रही थी. इसलिए विशेष लोक अभियोजक को गवाह से प्रश्न पूछने व जिरह करने की अनुमति दी गई.
गवाह से क्रास एग्जामिनेशन में 4 वर्षीय बच्ची ने कहा कि वह याद नहीं कर पा रही है कि उस दिन क्या हुआ था और उसने मां के कहे अनुसार बयान दे रही थी. नाबालिग बच्ची ने इस बात से इनकार कर दिया कि इस घटना के बारे में उसने अपनी मां को कुछ बताया था.
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इस मामले में 14 पेज के अपने ऑर्डर में हाईकोर्ट ने कहा कि नाबालिग बच्ची से क्रॉस एग्जामिनेशन से यह पता चलता है कि गवाह को उस घटना के बारे में कुछ याद और जाहिर करने की क्षमता नहीं हैं. साथ ही सवाल के जवाब देने की परिपक्वता नहीं है इसलिए बच्ची को सक्षम गवाह नहीं माना जा सकता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता के बयान में उतार-चढ़ाव से इसे विश्वसनीय नहीं माना जा सकता है. ट्रायल कोर्ट के जज ने पीड़िता के भटके हुए बयान पर दोषसिद्ध करने को लेकर गलती की है.