यूपी-बिहार में भले ही बैल से खेती नहीं करते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में आज भी बैलों से की गई खेती काफी मात्रा में होती है. श्रावण मास के अमावस्या के दिन किसान हर साल अपने बैलों को पूजते हैं और उन्हें पिछले साल किए गए कामों के लिए धन्यवाद देते हैं. कोरोना महामारी के बाद इस बार बैल पोला किसान एक उत्सव की तरह मनाते नजर आए. हर विधानसभा के विधायक और जनप्रतिनिधि किसानों के इस उत्सव में शामिल हुए. इस दिन किसान अपने बैलों को नहला धुला कर सजाता है और फिर उनकी पूजा करता है.
चिखली की विधायक श्वेता महाले की तस्वीर उनके प्रशंसक ने अपने बैल के पेट पर पेंटिंग के जरिए उकेरी और उस पर लिखा कि मेरे हक्की मेरी विधायक. हालांकि, हर विधानसभा के विधायक अपने-अपने विधानसभाओं में इस तरीके की पूजा में जाते हैं, ताकि वह किसानों के साथ सीधे संवाद कर सके.
क्यों और कैसे होता है बैल पोला (बैल-पोळा ) या बैल पूजा
दरअसल, इस त्योहार के जरिए महाराष्ट्र के किसान अपने बैलों को साल भर उनका साथ देने और उनके खेत में लहलहाती फसल उगाने के लिए धन्यवाद देते हैं, यूं तो यह त्यौहार मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा उत्सव की तरह महाराष्ट्र में बनाया जाता है. श्रावण मास के अमावस्या के दिन किसान अपने घर के बैलों की पूजा करते हैं. उन्हें पिछले साल की गई मेहनत के लिए धन्यवाद देते हैं और आभार व्यक्त करते हुए आगे की फसलों के लिए उनकी पूजा करते हैं.
इस दिन किसान के घर का एक व्यक्ति व्रत रखता है और घर में तांबे के लोटे में कलश रखा जाता है. किसान बताते हैं कि जिस हल से हमलोग बुवाई करते हैं, उसके नीचे जो लोहे का फाल लगा होता है उसे निकालकर उसपर रख देते हैं. इसका मतलब है कि आज काम की छुट्टी है. बैलों की आरती होती है, उन्हें पोली नैवेद्य (चावल और दाल से बना विशेष व्यजंन) और फिर गुडवनी (गुड़ से बना व्यंजन) खिलाया जाता है, बैल पोली खिलाई जाती है, घर के लोग मिलकर बैलों को खेती में साथ देने के लिए धन्यवाद कहते हैं. कई लोग घर में पूजा करने के बाद गांव के मंदिर आदि में जाकर नारियल भी फोड़ते हैं. कई जगहों पर गांव के लोग अपने-अपने बैलों को लेकर आते हैं, और एक अघोषित प्रतियोगिता होती है कि किसके बैल ज्यादा अच्छे से सजाए संवारे गए हैं.
महाराष्ट्र के ज्यादातर किसानों के घरों में आज भी आपको बैल मिलेंगे. वो भले नाशिक में अंगूर, अनार और प्याज की खेती करने वाला किसान हों, मराठवाड़ा के उस्मानाबाद में सोयाबीन-ज्वार, लातूर की मशहूर अरहर उगाता हो या फिर विदर्भ के नागपुर में संतरे और यवतमाल में कपास, बड़े छोटे ट्रैक्टर होने के बावजूद उनके घरों में बैल मिलेंगे, ये बैल न सिर्फ उनकी जरूरत हैं, बल्कि उनके वृहद परिवार का हिस्सा भी हैं. ये किसान बैल पोला के दिन अपने परिवार के इन्हीं पशुओं को धन्यवाद देने के लिए मनाते हैं.
Source : Abhishek Pandey