महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सरकार अब राज्यपाल के रहमोकरम पर ही टिकी है. कोरोना संक्रमण के काल में जहां महाराष्ट्र में तेजी से संक्रमण बढ़ता जा रहा है, वहीं उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने के प्रस्ताव पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अब तक चुप्पी ही दिखाई है. पिछले 9 अप्रैल को राज्य सरकार ने उद्धव ठाकरे को MLC मनोनीत करने के लिए राज्यपाल से पैरवी की थी, लेकिन अब तक राज्यपाल की तरफ से कोई फैसला नहीं लिया गया है.
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28 नवंबर 2019 को उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और 28 मई 2020 को उनकी सरकार के छह माह पूरे हो रहे हैं. इसके बावजूद ठाकरे विधानमंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं. राज्यपाल को भेजी गई सिफारिश में राज्य सरकार की तरफ से कहा गया था कि मौजूदा हालात में विधान परिषद के चुनाव नहीं हो सकते हैं. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, जो इस समय ना तो विधानसभा के और ना ही विधान परिषद के सदस्य हैं, उन्हें राज्यपाल की ओर से नामित किए जाने वाली विधानपरिषद की सीट के लिए मनोनीत किया जाए.
एक दिन पहले राज्य सरकार ने सीएम उद्धव ठाकरे को MLC के रूप में मनोनीत किए जाने को लेकर फिर से सिफारिश की गई. कैबिनेट द्वारा सर्वसम्मति से राज्यपाल को भेजी गई यह दूसरी सिफारिश है. 27 अप्रैल को डिप्टी सीएम अजीत पवार की अध्यक्षता में हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में राज्यपाल को महाराष्ट्र के MLC के रूप में सीएम उद्धव ठाकरे को नियुक्त करने की सिफारिश करने का निर्णय लिया गया है.
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हालांकि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने कैबिनेट की सिफारिश पर अब तक कोई फैसला नहीं लिया है. अगर राज्यपाल कैबिनेट की सिफारिश अस्वीकार कर चुके हैं तो उद्धव ठाकरे पास दो ही विकल्प होंगे. पहला, 3 मई को लॉकडाउन खत्म होने के तुरंत बाद चुनाव आयोग विधान परिषद की खाली पड़ी सीटों के लिए चुनाव का ऐलान करे और 27 मई से पहले चुनाव प्रक्रिया पूरी कर परिणाम घोषित करे, ताकि मुख्यमंत्री निर्वाचित सदस्य के रूप में सदन के सदस्य बन सकें. हालांकि, कोरोना वायरस की त्रासदी के बीच चुनाव होना अभी मुश्किल लग रहा है.
चुनाव न होने पर उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना होगा और फिर दोबारा से शपथ लेनी होगी, ताकि उन्हें आगे के 6 माह के लिए किसी सदन का सदस्य निर्वाचित होने के लिए और समय मिल जाए. हालांकि इसमें बड़ा पेंच यह है कि मंत्रिमंडल की समस्त शक्तियां मुख्यमंत्री में निहित हैं. अगर मुख्यमंत्री अपने पद से इस्तीफा देते हैं तो समूचे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ेगा और फिर से सभी मंत्रियों को शपथ दिलानी पड़ेगी. यह भी जगजाहिर है कि सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद गेंद राज्यपाल के पास चली जाएगी और शपथ ग्रहण को लेकर अंतिम फैसला वे ही कर पाएंगे.
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संकट की इस स्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकार विधिवेत्ताओं से परामर्श ले रही है. यह भी हो सकता है कि राज्यपाल यदि कैबिनेट की सलाह नहीं मानते हैं तो सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है. संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि राज्यपाल द्वारा मनोनीत होने वाले एमएलसी सदस्यों के नामों की सिफारिश राज्य सरकार ही करती है. फिर भी राज्यपालों का आग्रह रहता है कि जिन नामों की सिफारिश राज्य सरकार कर रही है, वे गैर राजनीतिक हों.
उत्तर प्रदेश में 2015 में तत्कालीन अखिलेश सरकार ने राज्यपाल कोटे से MLC के लिए 9 उम्मीदवारों की सिफारिश की थी, लेकिन तत्कालीन गवर्नर राम नाईक ने चार नामों को ही मंजूरी दी थी और बाकी नाम वापस कर दिए थे. अखिलेश सरकार ने दोबारा से उनकी जगह दूसरे नाम भेजे थे, जिस पर गवर्नर ने सहमति दी थी.
Source : News Nation Bureau