देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की सड़कें अब क्या भिखारी मुक्त नजर आएगी. मुंबई पुलिस की ओर से दावा तो कुछ ऐसा ही किया जा रहा है. मुंबई पुलिस के अनुसार भिखारियों को सड़कों से हटाने के लिए विशेष अभियान चलाया जाएगा. संयुक्त पुलिस आयुक्त विश्वास नागरे पाटिल के मुताबिक सड़कों पर भीख मांगने वाले भिखारियों को पकड़ कर उन्हें उनके लिए बनाए गए विशेष केन्द्रों में रखा जाएगा. लेकिन इससे पहले भिखारियों की कोरोना की जांच की जाएगी. मुहिम बच्चों पर जबरदस्ती भीख मंगवाने के काम को रोकने के लिए शुरू की गई है. पुलिस की इस मुहिम के बारे में पाटिल ने कहा कि भीख मांगने के लिए अधिकतर बच्चों का इस्तेमाल किया जाता है. जिससे लोगों में इनके प्रति सहानुभूति पैदा होती है और लोग उन्हें भीख देते हैं. पैसे के लालच में भीख मांगने के लिए बच्चों की चोरी तक कि जाती है. इसके अलावा मुंबई में दिन प्रतिदिन भिखारियों की संख्या बढ़ रही है. इसलिए इस मुहिम की शुरुआत फरवरी माह से की गई है.
भिखारी स्वीकार केंद्र
उन्होंने बताया कि इस मुहिम के तहत पहली कार्रवाई आजाद मैदान पुलिस स्टेशन ने की है. इस कार्रवाई के तहत 14 भिखारियों को पकड़ा गया है. इन सभी लोगों की कोरोना जांच के बाद इन्हें चेम्बूर स्थिति भिखारी स्वीकार केंद्र में रखा जाएगा.
कानूनी रुप से भीख मांगना अपराध
मालूम ह कि कानूनी रुप से भीख मांगना अपराध है. इसलिए पुलिस ने मुंबई को भिखारी मुक्त बनाने के लिए यह अभियान शुरू किया है. इसके तहत कड़ी कार्रवाई की जा रही है. शहर को भिखारी मुक्त बनाने की मुहिम में, मुंबई पुलिस ने शहर की सड़कों से भिखारियों को भगाना शुरू कर दिया है. विश्वास नांगारे पाटिल ने सभी पुलिस उपायुक्त ; डीसीपी द्ध को निर्देश दिया है कि वे भीख मांगने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें. भिखारियों के खिलाफ यह अभियान पूरे महीने जारी रहेगा. भीख मांगने वाले अधिनियम 1959 की मुंबई रोकथाम के तहत भिखारियों को उठाया जाएगा और covid19 परीक्षण के बाद उन्हें चेंबूर में भिखारी घर भेजा जाएगा. इस घर की क्षमता 850 लोगों की है. घर के अंदर भी कोरोना के प्रकोप को रोकने के लिए covid परीक्षण समय समय पर आयोजित किया जाएगा.
मुंबई पुलिस के प्रवक्ता के अनुसार भीख मांगने की सामाजिक समस्या को दूर करने के लिए हमने सभी वरिष्ठ निरीक्षकों को भिखारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. भिखारियों को भी इस अभियान का हिस्सा बनाया जा रहा है.
1959 के अधिनियम के अनुसार," शहर में भीख मांगने को अपराध माना गया है और अधिकारियों ने भिखारियों को नियमित रूप से उठाया है, जो भटकते पाए गए हैं या उनके पास निर्वाह का कोई साधन नहीं है."
पुलिस के इस अभियान पर कई लोग सवाल भी उठा रहे हैं. इन लोगों का मानना है कि कोरोना महामारी के कारण कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन महामारी के कारण कई लोग अपने कमाई के स्रोत खो चुके हैं और भीख मांगने में लगे हुए हैं. इन लोगों को लगता है कि, अधिकारियों को अपने भिखारी घर में भेजने से पहले उनके पुनर्वास पर ध्यान देना चाहिए. गौरतलब है कि मुंबई में पिछले वर्ष नवंबर में नगर निगम ने लगभग 29ए000 लोगों की पहचान की है,जो भीख मांगने में लिप्त थे, जिनमें ज्यादातर बच्चे और महिलाएं शामिल हैं. केंद्र सरकार द्वारा देश भर के 10 शहरों में भिखारियों के व्यापक पुनर्वास के लिए एक राष्ट्रीय अभियान प्रस्तावित करने के बाद यह सर्वेक्षण किया गया था. हर शहर में इस अभियान के प्रभारी नागरिक निकाय को नोडल एजेंसी बनाया गया है.
अलहदा नजरिया
फेसबुक पेज भिखारी मुक्त भारत के अनुसार," हमारे देश में भिखारी इंडस्ट्री लगभग 180 करोड़ रूपए की है. वह भी तब, जब आज भी हमारे देश में गरीबी और भिखमंगी सबसे बड़ी समस्या हो. इस मुद्दे की तह तक जाने के लिए मुहम्मद रफीउद्दीन नाम के एक शख्स ने कुछ रोचक तथ्य उजागर किये है. मुहम्मद ने पूरे इंडिया में लगभग 73,00,000 भिखारियों पर सर्वे किया. करीब दो साल तक चले इस सर्वे में जो बात सामने आई उसने सभी के होश उड़ा दिए. इस सर्वे में इस बात का पता चला कि एक भिखारी सामान्यतः अपनी कमाई का 20 फीसदी खानपान पर खर्च करता है तो 30 फीसदी अपनी बुरी आदतों जैसे स्मोकिंग, ड्रिंकिंग आदि पर जबकि बाकी की बची 50 फीसदी कमाई उसके सेविंग अकाउंट में जाती है. जहाँ एक तरफ गरीबी एक सच्चाई है वही दूसरी और भीख मांगना कई मामलों में एक व्यवस्थित गैंग है."
भिखारी मुक्त भारत के अनुसार,, एक पर्टिकुलर इलाके में भिखारी भीख मांगते रहे इसलिए उन भिखारियों को अपनी कमाई का कुछ हिस्सा इस गैंग के लीडर को देना होता है. सबसे बड़ी समस्यां यह है कि इन भिखारियों को भीख मांगने की ऐसी आदत हो गई है कि वो कोई इज्जतदार काम करने की बजाये भीख मांगना पसंद करते है, बल्कि इन में से कुछ तो नौकरी कर रहे लोगो से भी ज्यादा पैसे कमाते है. आप अक्सर कुछ भिखारी महिलाओं कि गोद में एक बच्चा देखते होंगे, जिस पर तरस खा कर आप पैसे भी दे देते है. लेकिन हम आपको बता दे कि यह बच्चे कई मामलों में उनके नहीं होते है, बल्कि किराए पर लाये या किडनैप किये गए बच्चे होते है. यह बच्चे लम्बे समय तक शांत रहे, इसलिए इन्हे क्लोरोफॉर्म या अल्कोहल दे कर चुप करा दिया जाता है. तो अगली बार किसी भिखारी को पैसा देने के पहले दस बार सोचे. क्योंकि इन भिखारियों को पैसा देकर आप गरीबी दूर नहीं कर रहे बल्कि और कई लोगो को इस भिखारी माफिया को ज्वाइन करने के लिए प्रेरित कर रहे है.
HIGHLIGHTS
- हमारे देश में भिखारी इंडस्ट्री लगभग 180 करोड़ रूपए की है
- केंद्र सरका द्वारा देश भर के 10 शहरों में भिखारियों के व्यापक पुनर्वास के लिए एक राष्ट्रीय अभियान प्रस्तावित
- शहर में भीख मांगने को अपराध माना गया है
Source : News Nation Bureau