Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव में इस बार महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (MVA) ने बेहतर प्रदर्शन किया. हालांकि, प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी अंतिम समय में 'इंडिया गठबंधन' से बाहर हो गई और अकेले चुनाव लड़ा, लेकिन वह एक भी सीट नहीं जीत पाई. अकोला से चुनावी मैदान में उतरे प्रकाश आंबेडकर भी चुनाव हार गए. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या 'वंचित फैक्टर' महाराष्ट्र में बेअसर रहा? 2019 की तुलना में 38 सीटों पर लड़ी वंचित बहुजन अघाड़ी को करीब 27 लाख वोट कम मिले, लेकिन नौ सीटों पर वंचित को जीत के अंतर से ज्यादा वोट मिले, जिससे सीटों के नतीजों पर कहीं न कहीं प्रभाव पड़ा.
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आंकड़ों से समझें हार का कारण
आंकड़ों में साफ दिख रहा है कि महाविकास अघाड़ी के 4 उम्मीदवार वंचित के कारण हारे. अगर वंचित बहुजन अघाड़ी महाविकास अघाड़ी में शामिल हो जाती तो महाराष्ट्र में महा-युति की तस्वीर और बिगड़ सकती थी. वंचित बहुजन अघाड़ी की वजह से प्रदेश में दलित और मुसलमानों का वोट बंटा, जिससे कई जगह महाविकास अघाड़ी का खेल बिगड़ गया. अकोला, बुलढाणा, हातकणंगले और उत्तर पश्चिम मुंबई में वंचित बहुजन अघाड़ी के कारण महाविकास अघाड़ी को हार का सामना करना पड़ा.
इन सीटों पर थी अहम भूमिका
अकोला सीट पर खुद प्रकाश आंबेडकर खड़े हुए, जिससे यहां लड़ाई त्रिकोणीय रही. अंबेडकर को 2,76,747 वोट मिले और कांग्रेस के अभय पाटिल महज 40,626 वोटों से हार गए. अगर अंबेडकर महाविकास अघाड़ी से खड़े होते तो इस स्थान पर उनकी जीत हो सकती थी या फिर अंबेडकर ने महाविकास अघाड़ी का समर्थन किया होता तो कांग्रेस उम्मीदवार जीत जाता.
बुलढाणा में ठाकरे गुट के नरेंद्र खेडेकर पर भी वंचित फैक्टर का असर पड़ा. वे 29,479 वोटों से हार गए.यहां वंचित के वसंतराव मगर को 98,441 वोट मिले। अगर ये वोट खेडेकर को मिलते तो उनकी जीत पक्की होती.
हातकणंगले में ठाकरे उम्मीदवार सत्यजीत पाटिल महज 13,426 वोटों से हार गए. इस स्थान पर वंचित के उम्मीदवार डीसी पाटिल खड़े थे, जिन्हें 32,696 वोट मिले. इसका असर ठाकरे गुट के उम्मीदवार पर पड़ा.
उत्तर पश्चिम मुंबई में ठाकरे समूह के उम्मीदवार अमोल कीर्तिकर महज 48 वोटों से हार गए, जबकि इस क्षेत्र में वंचित के उम्मीदवार परमेश्वर रंशुर को 10,052 वोट मिले.
वहीं वंचित अघाड़ी ने सांगली, कोल्हापुर, बारामती और नागपुर जैसे चार निर्वाचन क्षेत्रों में महाविकास अघाड़ी का समर्थन किया था. इनमें से कोल्हापुर, बारामती और सांगली में महाविकास अघाड़ी को जीत मिली है.
राजनीतिक विश्लेषक सलीम खान का कहना है कि वंचित बहुजन अघाड़ी को गठबंधन में ही लड़ना चाहिए था, इससे महायुति को और बड़ा नुकसान पहुंचा पाते. हाविकास आघाड़ी को साथ न लड़ने से नुकसान हुआ और प्रकाश अंबेडकर भी अगर अकोला में महाविकास आघाड़ी के साथ होते तो वहां से आराम से जीत जाते और उनका एक सांसद महाराष्ट्र से संसद में चला जाता. इस तरह से उन्होंने खुद का भी नुकसान कर लिया.
वहीं आपको बता दें कि वंचित के कई वोटरों का मानना है कि उनका वोट बर्बाद न हो, इसलिए गठबंधन को चुना. वोट कहीं बंट न जाए, इसलिए वंचित को नहीं दिया. उनका कहना था कि उन्हें राहुल गांधी चाहिए थे और नरेंद्र मोदी को हटाना था, इसलिए वोट बर्बाद नहीं किया.
अगर प्रकाश अंबेडकर ने महा विकास अघाड़ी को समर्थन दिया होता तो महा विकास अघाड़ी का प्रदर्शन बेहतर होता और महा विकास अघाड़ी महाराष्ट्र में 34 से अधिक सीटें जीत सकती थी. अकोला और हिंगोली को छोड़कर अन्य सभी जगहों पर वंचित को एक लाख से भी कम वोट मिले. 2024 में निराशाजनक प्रदर्शन ने वंचित बहुजन आघाड़ी के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.
इसके अलावा आपको बता दें कि वंचित बहुजन अघाड़ी के गठबंधन में नहीं होने से महाविकास अघाड़ी को नुकसान हुआ. वंचित बहुजन अघाड़ी का स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का फैसला उन्हें महंगा पड़ा. अगर उन्होंने महा विकास अघाड़ी का समर्थन किया होता तो शायद नतीजे कुछ और होते. अब वंचित बहुजन अघाड़ी को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा और अपनी भविष्य की राजनीतिक दिशा तय करनी होगी.
HIGHLIGHTS
- महाराष्ट्र में 'वंचित फैक्टर' ने MVA को पहुंचाया बड़ा नुकसान
- आंकड़ों से समझें हार का कारण
- महाराष्ट्र के कई सीटों पर थी अहम भूमिका
Source : News Nation Bureau