महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इन दिनों काफी मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. एक तरफ राज्य में कोरोनावायरस (Corona Virus) के संक्रमण से संघर्ष कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें अपनी कुर्सी बचाने की जद्दोजहद है. दरअसल, उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद की शपथ लिए हुए छह महीने 28 मई 2020 को पूरे हो रहे हैं. लेकिन अभी तक वो विधानमंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं. इस बीच महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने प्रस्ताव पारित कर उद्धव ठाकरे को राज्यपाल मनोनीत कोटे से विधान परिषद पर नियुक्त करने के लिए राज्यपाल को बिनती की. इससे पहले 9 अप्रैल को ऐसा ही प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल को भेजा गया था. हालांकि अभी भी उस पर औपचारिक फैसला अभी तक नहीं हुआ है.
डिप्टी सीएम अजीत पवार की अध्यक्षता में आज हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में राज्यपाल को महाराष्ट्र के एमएलसी के रूप में सीएम उद्धव ठाकरे को नियुक्त करने की सिफारिश करने का निर्णय लिया गया है. कैबिनेट द्वारा सर्वसम्मति से भेजी गई यह दूसरी सिफारिश है. हालांकि 9 अप्रैल को उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने के लिए प्रस्ताव राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Kosari) के पास भेजा गया था. अजीत पवार ने कैबिनेट की बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके उसे राज्यपाल के पास भेजा गया था. लेकिन अभी तक भगत सिंह कोश्यारी ने कोई फैसला नहीं लिया है. दो सप्ताह होने जा रहे हैं, लेकिन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी अभी भी इस पर खामोश हैं.
राज्यपाल कोश्यारी के पाले में गेंद
जो प्रस्ताव राज्यपाल के पास भेजा गया था उसमें कहा गया था कि मौजूदा परिस्थिति में विधान परिषद के चुनाव नहीं हो सकते हैं. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, जो इस समय ना तो विधानसभा के और ना ही विधान परिषद के सदस्य हैं, उन्हें राज्यपाल की ओर से नामित किए जाने वाली विधानपरिषद की सीट के लिए मनोनीत किया जाए.
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उद्धव ठाकरे के पास होगा तीन विकल्प
सवाल यह कि अगर राज्यपाल इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते हैं तो फिर सीएम ठाकरे के पास क्या विकल्प बचेगा. उद्धव ठाकरे के पास ऐसी स्थिति में दो विकल्प होंगे. पहला जैसे ही लॉकडाउन खत्म होता है वैसे चुनाव आयोग विधान परिषद में खाली सीटों के लिए चुनाव का ऐलान कर दे. दूसरा उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देकर दोबारा शपथ लेनी होगी. लेकिन अगर वो ऐसा करते हैं तो फिर पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना होगा. इसके बाद फिर से सभी मंत्रियों को शपथ दिलानी होगी.
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साल 2015 में यूपी में भी हुआ था कुछ ऐसा
इतना ही नहीं अगर ऐसा उद्धव ठाकरे करते हैं तो फिर से गेंद राज्यपाल के पाले में चली जाएगी. फिर वो तय करेंगे कि शपथ कब दिलानी है. हालांकि इस इतिहासी को पहले भी यूपी में दोहराया जा चुका है. साल 2015 में तत्कालीन अखिलेश सरकार ने राज्यपाल कोटे से एमएलसी के लिए नामित सीट पर 9 उम्मीदवारों के नाम की सिफारिश भेजी थी. लेकिन उस वक्त गर्वनर रहे राम नाइक ने चार नामों पर अनुमोदन किया था. पांच नाम वापस भेज दिया था. जिसके बाद अखिलेश सरकार ने दूसरा नाम भेजा जिसपर उन्होंने सहमति दी.
अब देखना है कि महाराष्ट्र की सियासी बिसाद कैसे आगे बढ़ती है. राज्यपाल उद्धव ठाकरे के नाम पर मुहर लगाते हैं या फिर उद्धव ठाकरे को कोई और रास्ता अपनाना होगा. फिलहाल महाराष्ट्र में कोरोना ने जिस तरह से कहर बरपाया है उसने वहां के लोगों की जिंदगी को उथल पुथल करके रख दिया है.