महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई हलचल के बीच, मराठा आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटील ने चुनावों से खुद को अलग कर लिया है. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया है कि वे मराठा आंदोलन की तरफ से जिन उम्मीदवारों ने नामांकन भरा था, वे अपने नाम वापस लें. इस निर्णय ने महायुति (बीजेपी, एनसीपी और शिवसेना गठबंधन) को परेशान कर दिया है.
मनोज जरांगे पाटील का यू-टर्न
मनोज जरांगे पाटील का यह कदम महायुति के लिए चिंताजनक है, खासकर जब वे मराठवाड़ा से आते हैं, जहां लोकसभा की 8 सीटें हैं. पिछली बार, उन्होंने बीजेपी और देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ मोर्चा खोला था, जिसके परिणामस्वरूप महायुति को 7 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. यदि पाटील चुनाव में उम्मीदवार खड़े करते, तो इसका सीधा असर महाविकास आघाडी पर पड़ सकता था, जिससे महायुति को फायदा होता.
वोट बैंक की स्थिति
मनोज जरांगे ने स्पष्ट किया कि एक समाज के बल पर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता. उन्होंने कहा, “मुस्लिम और दलित नेताओं से उम्मीदवारों की लिस्ट मांगी थी, लेकिन वह नहीं मिली. इसलिए हम इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे.” उनकी इस बात से यह स्पष्ट होता है कि वे एक समग्र राजनीतिक रणनीति पर विचार कर रहे हैं. इसके पीछे एक मजबूत वोट बैंक की पहचान है, जिसमें मराठा, दलित और मुस्लिम समुदाय शामिल हैं.
महाविकास आघाडी की संभावनाएं
शरद पवार ने भी पाटील के चुनाव न लड़ने के निर्णय पर खुशी जताई है. उनका मानना है कि इससे बीजेपी को लाभ होगा. महाविकास आघाडी के नेता समझते हैं कि अगर जरांगे पाटील चुनाव में उतरते, तो वोटों का बंटवारा होता, जिससे उन्हें नुकसान होता.
आगे का रास्ता
अब सवाल यह है कि क्या मराठा समुदाय जरांगे के साथ बना रहेगा? उन्होंने पिछले तीन महीनों में चुनाव लड़ने का संकेत दिया था, लेकिन अब यू-टर्न लेने से समुदाय में असमंजस की स्थिति बन सकती है. हालांकि, गरीब और अवसरहीन मराठा युवा अभी भी उनके प्रति आशान्वित हैं.
इस बार के चुनावों में क्या कुछ नया देखने को मिलेगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन मनोज जरांगे पाटील का यह निर्णय निश्चित रूप से महाराष्ट्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है.