Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं कि इस बीच महायुती के अंदर खटपट चर्चा में आई है. पार्टी की बैठक के दौरान मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के बीच तीखी बहस की खबर ने सभी को हैरान कर दिया है. मीडिया सूत्रों के मुताबिक यहां मंत्रिमंडल की मीटिंग के दौरान सीएम एकनाथ शिंदे और उनके डिप्टी सीएम अजित पवार के बीच नोकझोंक हो गई. हालात इतने बिगड़े कि अजित पवार गुस्से में बीच बैठक को छोड़कर निकल गए.
गौरतलब है कि हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी ने तीसरी बार विजयी पताका लहराई है. ऐसे में अब महाराष्ट्र में भी हर राजनीतिक दल विकास को फोकस कर अपने बेस्ट परफॉर्मेंस देने में जुटा हुआ है. इसी क्रम में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने गुरुवार राज्य के लिए कई बड़ी घोषणाओं का प्रस्ताव रखा.
सूत्रों के मुताबिक अजित पवार ने इनमें से कुछ प्रस्तावों पर कड़ी आपत्ति जताई और मंजूरी देने से मना कर दिया. इसी वजह से दोनों के बीच तकरार देखने को मिली. कैबिनेट चुनाव से पहले कई महत्वपूर्ण पहल और कल्याणकारी योजनाओं को तेजी से लागू करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुती सरकार वोटरों का समर्थन हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है.
सामने आई ये वजह
मीडिया सूत्रों की मानें तो अजित पवार की इस असहमति की जड़ बारामती से आए कुछ प्रस्ताव थे, जिन्हें शिंदे ने आगे बढ़ाया था. कयास लगाए जा रहे थे कि ये प्रस्ताव शरद पवार के कार्यालय से मुख्यमंत्री के पास मंजूरी के लिए आए थे. इस बात से नाराज अजित पवार ने इन्हें मंजूरी देने से इनकार कर दिया. हालांकि, बाद में कैबिनेट ने 38 प्रस्तावों को मंजूरी दे दी, लेकिन यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है कि इसमें बारामती परियोजना का जिक्र था या नहीं.
अजित पवार ने दिया जवाब
अजित पवार ने मीडिया से बात करते हुए ख्यमंत्री शिंदे के साथ अपनी असहमति और तकरार के बारे में किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया. हालांकि, उन्होंने मामले को हल्के में लेते हुए कहा, ‘मैं बैठक शुरू होने के 10 मिनट के भीतर नहीं गया. मैं शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस से उचित अनुमति लेकर ही निकला क्योंकि लातूर के उदगीर विधानसभा क्षेत्र में मेरी पहले से कुछ बैठकें निर्धारित थीं. मुझे दोपहर 1 बजे फ्लाइट पकड़नी थी, इसलिए मैं बैठक से जल्दी निकल गया’. मीडिया सूत्रों का तो ये भी कहना है कि अजित पवार की शिंदे के प्रस्ताव को मंजूरी न देना और उसके बाद हुई बहस कैबिनेट के लिए शॉकिंग है. इससे सरकार के भीतर कलह के सुर सुनाई देने लगे हैं.