मुम्बई: लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का NDA में शामिल होने की चर्चा महाराष्ट्र में सियासी विवाद का कारण बन गयी है. कभी भूमि पुत्रों की राजनीति के नाम पर उत्तरप्रदेश और बिहार के गरीब मज़दूरों पर निशाना साधने वाले राज ठाकरे भले आज हिंदुत्व की बात करने लगे हैं लेकिन उनका पुराना पाप अब भी उनका पीछा नही छोड़ रहा है. हाल ही में राज ठाकरे ने दिल्ली में जाकर गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. राज ठाकरे और अमित शाह की मुलाकात के बाद राज ठाकरे के NDA में शामिल होना लगभग तय माना जा रहा है लेकिन इस खबर के बाहर आने के साथ ही राज ठाकरे के खिलाफ गैर मराठी लोगों की नाराजगी भी खुलकर सामने आ रही है.
दक्षिण मुम्बई का व्यापारी वर्ग भी NDA में राज ठाकरे की एंट्री से नाराज़
NDA में राज की एंट्री से उत्तरभारत के लोगों में नाराजगी तो है ही लेकिन दक्षिण मुम्बई का व्यापारी वर्ग भी नही चाहता कि राज ठाकरे और बीजेपी एक साथ आए. सूत्रों की माने तो राज ठाकरे ने अमित शाह से इस लोकसभा चुनाव में एक से दो सीटों की मांग की है. राज ठाकरे दक्षिण मुम्बई से अपना प्रत्याशी उतारना चाहते हैं लेकिन दक्षिण मुम्बई का व्यापारी वर्ग इसके खिलाफ है. व्यापारी समाज के लोगों की माने तो उन्हें राज ठाकरे पर भरोसा नही है. उनको लगता है कि MNS का प्रत्याशी अगर जीत के आता है तो व्यापारी वर्ग को परेशानी किया जाएगा. दक्षिण मुम्बई में ज़वेरी बाजार, कालबादेवी, मलबार हिल और कोलाबा जैसे इलाकों में कई नामी उद्योगपति और बड़ी संख्या में व्यापारी रहते हैं. जिनका मानना है कि वो मोदी के साथ तो हैं लेकिन अगर राज ठाकरे का प्रत्यासी यहां से चुनाव लड़ता है तो वो उसका साथ नही देंगे.
उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग क्यों हैं राज से नाराज़ ?
दरअसल, राज ठाकरे का राजनीतिक इतिहास विवादों से घिरा है. 2006 में अविभाजित शिवसेना से अलग होने के बाद राज ठाकरे उस वक़्त चर्चा में आए थे जब साल 2008 में मनसे के गुंडों ने रेलवे बोर्ड का परीक्षा देने आए यूपी और बिहारी छात्रों पर हमला कर दिया था और उन्हें जमकर पीटा था. इस हमले के बाद उत्तरप्रदेश और बिहार के कई बड़े नेताओं ने MNS जैसी पार्टी को बंद करने और राज ठाकरे के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की थी. इस दौरान राज ठाकरे पर कई कानूनी मामले भी दर्ज हुए और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था. लेकिन राज ठाकरे कभी रुके नही वो लगातार उत्तरभारतीयों के खिलाफ हर मंच से ज़हर उगलते रहे. इसके बाद भी अगले कई सालों तक मुम्बई में रहने वाले यूपी-बिहार के फेरी वालों से लेकर ऑटो चालक हो या गरीब प्रवासी मज़दूर, मनसे के कार्यकर्ता उनको अपना निशाना बनाते रहे. राज ठाकरे की सियासी इतिहास का ये वो काला काल है जिसे उत्तरभारत के लोग चाह कर भी भुला नही पा रहे हैं.
गुजराती व्यापारी क्यों हैं मनसे से नाराज़ ?
सिर्फ उत्तरप्रदेश और बिहार के लोग ही नही बल्कि गुजराती समाज भी राज ठाकरे और उनकी पार्टी से नाराज़ रहते हैं. राज ठाकरे और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं से गुजराती और जैन समाज के व्यापारीयों की नाराजगी की एक नही कई वजह हैं. मुम्बई में बड़ी तादाद में बसने वाले गुजराती व्यापारियों के साथ मनसे कार्यकर्ता मराठी साइन बोर्ड के नाम पर भीड़ चुके हैं. पिछले साल अक्टूबर महीने में मनसे कार्यकर्ताओं ने मुम्बई के घाटकोपर इलाके में रोड पर लगे एक गुजराती साइन बोर्ड को तोड़ डाला. मराठी भाषा और भूमि पुत्रों की राजनिति करने वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने मुम्बई में दुकानों के बाहर लगे हिंदी या इंग्लिश साइन बोर्ड के खिलाफ भी जमकर उत्पात मचाया था. इतना ही नही मुम्बई के कई इलाके में मांसाहारी शाकाहारी खान-पान के लिए भी मनसे कार्यकर्ता और जैन गुजराती समाज के लोगों के बीच विवाद आम है.
Source : Pankaj R Mishra