Maharashtra News: देशभर में कई बार धार्मिक अधिकारों को लेकर विवाद उठते रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र का एक हालिया मामला इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है. यहां एक मुस्लिम समुदाय के पुलिस दरोगा को दाढ़ी रखने के कारण निलंबित कर दिया गया है, जिससे पूरे इलाके में हलचल मच गई है. यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान के मौलिक अधिकारों से जुड़ा है, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई है.
इस मुद्दे पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या किसी व्यक्ति को उसके धर्म के पालन के लिए सजा दी जा सकती है, खासकर तब जब वह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार रखता है. अनुच्छेद 25 भारतीय नागरिकों को अपने धर्म का पालन, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है. ऐसे में, इस मामले में पुलिस बल द्वारा लिए गए निर्णय ने कई कानूनी और संवैधानिक सवाल खड़े कर दिए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी है, जो यह तय करेगी कि क्या दाढ़ी रखने के कारण किसी मुस्लिम व्यक्ति को पुलिस सेवा से निलंबित करना उसके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है. इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकारी नियम और नीतियां किसी व्यक्ति के धार्मिक विश्वास और अधिकारों से ऊपर हो सकती हैं?
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सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक मुद्दों पर बहस
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस संवैधानिक मुद्दे पर विचार करने के लिए सहमति व्यक्त की है. याचिका महाराष्ट्र राज्य रिजर्व पुलिस बल (एसआरपीएफ) के एक मुस्लिम कॉन्स्टेबल द्वारा दायर की गई थी, जिसे दाढ़ी रखने के कारण निलंबित कर दिया गया था. यह निलंबन 1951 के 'बॉम्बे पुलिस मैनुअल' का उल्लंघन करने पर हुआ था. इस मामले में मुख्य मुद्दा यह है कि क्या धार्मिक मान्यताओं के आधार पर दाढ़ी रखने का अधिकार मौलिक अधिकारों के अंतर्गत आता है और क्या इस आधार पर किसी को निलंबित किया जा सकता है?
कोर्ट की प्राथमिकता और याचिका की प्रासंगिकता
वहीं जब प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को सूचित किया गया कि यह मामला लोक अदालत में लंबित है और अभी तक इसका समाधान नहीं हुआ है, तो उन्होंने कहा कि ''यह संविधान का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.'' इस मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने इसे 'नॉन मिसलेनियस डे' पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया है. सुप्रीम कोर्ट में सोमवार और शुक्रवार को केवल नयी याचिकाओं की सुनवाई होती है, जिन्हें 'मिसलेनियस डे' कहा जाता है, जबकि मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को नियमित सुनवाई वाले मामलों की सुनवाई की जाती है, जिन्हें 'नॉन मिसलेनियस डे' कहा जाता है.
याचिका का इतिहास और भविष्य की सुनवाई
आपको बता दें कि इस मामले के याचिकाकर्ता जहीरूद्दीन एस बेडाडे ने 2015 में शीर्ष अदालत का रुख किया था. इससे पहले, एक पीठ ने कहा था कि यदि वह अपनी दाढ़ी कटवाने के लिए सहमत होते हैं, तो उनका निलंबन रद्द कर दिया जाएगा. हालांकि, याचिकाकर्ता ने उस समय यह शर्त मानने से इनकार कर दिया था, क्योंकि यह उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन था.