राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने मंगलवार को कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लद्दाख दौरे को लेकर आश्चर्यचकित नहीं थे और याद दिलाया कि 1962 के युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण ने सीमा क्षेत्र का दौरा किया था. संवाददाताओं से बात करते हुए पवार ने याद किया कि जब वह 1993 में रक्षा मंत्री थे तब वह चीन गए थे और एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके बाद दोनों पक्षों के सैनिक पीछे हटे थे.
उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री के साथ सर्वदलीय बैठक के दौरान भी मैंने वर्तमान मुद्दे को लेकर कहा था कि इसे राजनयिक बातचीत के जरिए सुलझाए जाने की आवश्यकता है और हमें चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना चाहिए.' मोदी के लद्दाख दौरे से संबंधित सवाल पर पवार ने कहा कि चीन ने 1962 में भारत को पराजित किया था लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री वहां सैनिकों का मनोबल बढ़ाने गए थे.
वहीं दूसरी ओर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के सैनिक अभी तक पूर्वी लद्दाख (Ladakh) में पैंगोंग झील और डेपसांग से पीछे नहीं हटे हैं. सूत्रों ने मंगलवार को बताया कि भारतीय सेना (Indian Army) ने यह पाया है कि अपने तमाम सामान सहित चीनी सैनिक पैंगोंग झील और डेपसांग क्षेत्र से वापस नहीं लौटे हैं. भारतीय और चीनी सैनिकों के हटने की प्रक्रिया लद्दाख सेक्टर में गलवान घाटी (Galwan Valley), हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट में शुरू हुई है. हालांकि यह अभी तक सत्यापित नहीं किया गया है.
कुछ स्थानों पर हटे चीनी सैनिक
दो पक्षों की ओर से सेनाओं को हटाने की प्रक्रिया दो महीने के सैन्य गतिरोध के बाद 'कॉर्प्स कमांडर स्तर की बैठकों में तय शर्त के अनुसार' हो रही है. सूत्रों ने कहा कि चीनी सैनिकों को गलवान घाटी में गश्त बिंदु 14 पर टेंट और संरचनाओं को हटाते हुए देखा गया था, जहां 15 जून की रात भारतीय और पीएलए के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हो गई थी. चार दशकों में दोनों सेनाओं के बीच हुई इस सबसे भीषण झड़प में कुल 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. वहीं चीन के भी कुछ सैनिक मारे जाने की खबर है, मगर चीन ने अभी तक अपने हताहत हुए सैनिकों का आंकड़ा स्पष्ट नहीं किया है.
Source : Bhasha