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एकनाथ शिंदे के बेटे के उज्जैन मंदिर गर्भगृह में प्रवेश पर उठे सवाल, जांच के आदेश

श्रीकांत शिंदे ने मुंबई में कहा, विपक्ष को हमारे मंदिर जाने से एलर्जी होती है. वे खुद दर्शन नहीं करते और दूसरों को भी ऐसा करने से रोकते हैं.

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Garima Sharma
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एकनाथ शिंदे के बेटे के उज्जैन मंदिर गर्भगृह में प्रवेश पर उठे सवाल, जांच के आदेश

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बेटे और लोकसभा सदस्य श्रीकांत शिंदे को मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने की अनुमति मिलने के बाद विवाद खड़ा हो गया है. मंदिर अधिकारियों ने इस मामले की जांच के आदेश दिए हैं, क्योंकि गर्भगृह में किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं है, जो कि पिछले लगभग एक साल से लागू है.

श्रीकांत शिंदे का गर्भगृह में प्रवेश 

गुरुवार शाम, श्रीकांत शिंदे अपनी पत्नी और दो अन्य लोगों के साथ गर्भगृह में भगवान की पूजा करने पहुंचे. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिससे विवाद ने और जोर पकड़ लिया. मंदिर समिति के अध्यक्ष और उज्जैन के जिला कलेक्टर, नीरज कुमार सिंह, ने इस अनधिकृत प्रवेश की निंदा की और मंदिर प्रशासक को इस मामले में तुरंत कार्रवाई करने का निर्देश दिया.

प्रवेश को लेकर जांच के आदेश

मंदिर के प्रशासक, गणेश धाकड़, ने कहा कि उन्होंने जांच के आदेश दे दिए हैं. इसके तहत गर्भगृह के प्रवेश नियमों का उल्लंघन करने वाले निरीक्षकों और अन्य लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इससे स्पष्ट है कि मंदिर प्रशासन इस मामले को गंभीरता से ले रहा है.

विपक्ष की प्रतिक्रिया

इस घटना पर विपक्षी कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जताई है. कांग्रेस विधायक महेश परमार ने कहा, "एक आम भक्त को भगवान महाकालेश्वर के दर्शन के लिए लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ता है, जबकि वीआईपी को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति दी गई. यह नियमों का उल्लंघन है और हम इसका विरोध करते हैं." 

श्रीकांत शिंदे का पलटवार

आलोचनाओं का सामना करते हुए, श्रीकांत शिंदे ने मुंबई में रिएक्शन देते हुए कहा कि, विपक्ष को हमारे मंदिर जाने से एलर्जी होती है. वे खुद दर्शन नहीं करते और दूसरों को ऐसा करने से रोकते हैं. इस कमेंट्स ने उनकी स्थिति को और साफ किया कि वे विपक्ष की आलोचनाओं को नजरअंदाज कर रहे हैं.

महाकालेश्वर मंदिर का मामला

इस घटना ने न केवल एक धार्मिक स्थल की सुरक्षा और नियमों के पालन पर सवाल उठाया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि कैसे राजनीति और धर्म एक दूसरे से जुड़ सकते हैं. यह सवाल उठता है कि क्या वीआईपी व्यक्तियों को नियमों से ऊपर समझा जाता है, जबकि आम भक्तों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का यह मामला आगे चलकर धार्मिक और राजनीतिक बहसों का विषय बन सकता है. 

 

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