महाराष्ट्र की राजनीति में रोज नए-नए बदलाव हो रहे हैं. प्रदेश की राजनीति में बड़े उतार-चढ़ाव के बीच, भारतीय जनता पार्टी के पहली बार विधायक बने राहुल नार्वेकर को राज्य विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया है. विशेषज्ञों की नजर में यह "असामान्य" है. लेकिन डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा, "देश के इतिहास में सबसे कम उम्र का स्पीकर" भाजपा की एक आदर्श रणनीति है. नार्वेकर ने 288 सदस्यीय राज्य विधानसभा में अपने पक्ष में 164 और विपक्ष में 107 मतों से जीत हासिल की. यही नहीं राहुल नार्वेकर के ससुर रामराजे निंबालकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के एक वरिष्ठ नेता हैं जो वर्तमान में महाराष्ट्र विधान परिषद के अध्यक्ष हैं. इस तरह दामाद विधानसभा का तो ससुर विधानपरिषद का अध्यक्ष है.
देश में संसदीय परंपरा के अनुसार सदन के वरिष्ठ सदस्य को विधानसभा अध्यक्ष बनाया जाता रहा है. एक अनुभवी राजनेता जो कई सदन की कार्यवाही और फैसलों का हिस्सा रहा है, उसका चयन अध्यक्ष पद के लिए होता है. सोमवार को नवनियुक्त मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और फडणवीस महत्वपूर्ण फ्लोर टेस्ट का सामना करेंगे. विधानसभा अध्यक्ष के रूप में राहुल नार्वेकर की नियुक्ति भाजपा का राजनीतिक समायोजन और एक तदर्थ व्यवस्था है. वे एक विश्वसनीय व्यक्ति चाहते हैं जो इस महत्वपूर्ण मोड़ पर उनकी मदद कर सके. जब विश्वास प्रस्ताव लिया जाता है तो अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. एक ऐसे में अध्यक्ष पद पर विश्वसनीय व्यक्ति का होना महत्वपूर्ण है जो आने वाली बाधाओं को दूर कर सके.
यह भी पढ़ें: कांवड़ियों में बाबा बुलडोजर की तस्वीरों वाली ड्रेस की सबसे ज्यादा डिमांड
विधानसभा सचिवालय के पूर्व प्रधान सचिव अनंत कलसे ने कहा कि नार्वेकर इस पद के लिए सही व्यक्ति हैं. "एक पेशेवर वकील के रूप में एक विशाल कानूनी अनुभव होने के कारण वह फिट बैठते है. अध्यक्ष को कई कानूनी मुद्दों को संभालना होता है, चाहे वह दलबदल विरोधी कानून हो, व्हिप का सवाल हो या यह तय करना हो कि कौन सी पार्टी सबसे बड़ी है. बीजेपी ने नार्वेकर को सही चुना है.
राहुल नार्वेकर एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता सुरेश नार्वेकर, एक वरिष्ठ नगर पार्षद थे और उनके भाई मकरंद नार्वेकर वर्तमान में कोलाबा से दूसरी बार नगरसेवक हैं. नार्वेकर कई वर्षों तक शिवसेना की युवा शाखा के प्रवक्ता थे, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी द्वारा टिकट से वंचित किए जाने के बाद एनसीपी में शामिल हो गए. वहां उनके ससुर रामराजे निंबालकर पहले से ही थे. 2014 में लोकसभा चुनाव में मावल से राकांपा के टिकट पर चुनाव लड़ा. वह शिवसेना के श्रीरंग अप्पा बार्ने से हार गए. बाद में उन्होंने 2019 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर कोलाबा विधानसभा सीट जीती.