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सामना: फिल्मी स्टाइल में शिवसेना ने शिंदे-फडणवीस को घेरा, कही बेमेल आशिकी

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री सत्ता में हैं, लेकिन जिसे सरकार कहा जाए, वो व्यवस्था पंद्रह दिन बाद भी नहीं बन पाई है. फडणवीस कहते हैं, ‘महाराष्ट्र में कोई ‘सुपर सीएम’ नहीं है. शिंदे ही सभी के नेता हैं...

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Shravan Shukla
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Saamana editorial

संजय राउत( Photo Credit : File/News Nation)

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री सत्ता में हैं, लेकिन जिसे सरकार कहा जाए, वो व्यवस्था पंद्रह दिन बाद भी नहीं बन पाई है. फडणवीस कहते हैं, ‘महाराष्ट्र में कोई ‘सुपर सीएम’ नहीं है. शिंदे ही सभी के नेता हैं’. परंतु इन सभी नेताओं का भविष्य सुप्रीम कोर्ट में लटक गया है. फडणवीस-शिंदे सरकार की अनगिनत शरारतों का उपहास उड़ाया जाने लगा है. उस मौज-मस्ती का भी अजीर्ण होने लगा है. ठाकरे सरकार द्वारा लिए गए कुछ निर्णयों को ‘असंवैधानिक’ बताकर उन पैâसलों को स्थगित करने का बचकाना खेल चल रहा है. ठाकरे सरकार ने अपनी आखिरी कैबिनेट  बैठक में औरंगाबाद को संभाजीनगर, उस्मानाबाद को धाराशिव बनाने का प्रस्ताव मंजूर किया था. नई मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को दी.बा. पाटील का नाम देने का प्रस्ताव भी मंजूर किया था. इन प्रस्तावों को फडणवीस-शिंदे सरकार ने ‘गैरकानूनी’ आदि बताते हुए स्थगित वगैरह कर दिया था और जैसे ही लोग इसे लेकर उन्हें कटघरे में खड़ा करने लगे, एक बार फिर इन प्रस्तावों को उन्होंने मंजूरी दे दी.

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फिल्मी स्टाइल में बोला शिंदे-फडणवीस पर हमला

औरंगाबाद को संभाजीनगर करने के प्रस्ताव को मौजूदा दो स्तंभों वाली सरकार किस आधार पर अवैध मानती है? ठाकरे सरकार ने जब इस प्रस्ताव को मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी दी तो सरकार के पास बहुमत था ही. मेंढकों की तरह कूदकर शिंदे समूह में पहुंचे कुछ मंत्री भी उस बैठक में मौजूद थे. यह प्रस्ताव मंत्रिमंडल में सर्वसम्मति से मंजूर होने के बाद भी मौजूदा सरकार के पेट में दर्द होना, मजेदार ही है. शिंदे-फडणवीस की सरकार अस्तित्व में ही नहीं है. फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ के प्रेमी युगल ‘वासु-सपना’ की तरह ये दोनों ही घूमते हैं, मौज करते हैं, गाने गाते हैं, डांस करते हैं. कुल मिलाकर उनके जीवन में नई बहार आ गई है, लेकिन फिल्मी वासु-सपना का प्यार सच्चा था. वैसा इन वासु-सपना का है क्या? स्वार्थ, दगाबाजी की बुनियाद पर उनका रिश्ता खड़ा है. उनकी ‘आशिकी’ सत्ता के लिए है. उन्हें कुर्सी वाला ‘प्रेम रोग’ हो गया है. कुर्सी को ही ‘अनारकली’ मानकर उनके प्यार का जाप चल रहा है. महाराष्ट्र की राजनीति में यह नई ‘लव स्टोरी-22’ उदित हुई. वे दोनों रिश्ते में हैं. उनमें से एक समूह ने शिवसेना के नाम से कसम लेकर बांधा गया मंगलसूत्र झटके से तोड़ दिया, लेकिन फिर भी उनका दिन शिवसेना के बिना न उदित होता है न ही अस्त होता है. वासु-सपना की नई प्रेम कहानी में यह एक रोमांचक एपिसोड है. यह जोड़ी अभी तक मंत्रिमंडल की बारात नहीं बुला पाई. मंत्रिमंडल रूपी बारात कहां गई? यह सवाल है ही. फडणवीस-शिंदे का प्यार कितना टेढ़ा-मेढ़ा है, इस पर भी शोध करना जरूरी है.

वासु-सपना का सियासी परिवार बसेगा?

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मूलरूप से उनके पहला प्यार का अंकुर कब फूटा और किस-किस के साथ वटपूर्णिमा करके सात जन्मों के फेरे  लिए, यह अध्ययन का विषय है. इन वासु-सपना में सत्यवान और सावित्री कौन हैं, यह देखना भी बाकी है. वासु-सपना की जोड़ी के लिए फिलहाल जंगल खुला है. क्योंकि दोनों के बीच तीसरा कब आ जाएगा इसे लेकर संवैधानिक पेच उत्पन्न हो गया है, लेकिन संवैधानिक दुविधा में फंसी  सरकार (दोनों की) अपनी मर्जी से निरंकुश होकर निर्णय ले रही है. वासु-सपना का सियासी परिवार चलेगा या टूटेगा, यह तय नहीं है. लेकिन कई विधायक अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र से मुंबई में बारात बुलाकर शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं. मंत्री बनने के लिए कई अब्दुल्ला दीवाने बन गए हैं. इसलिए वासु-सपना के शरीर की हल्दी छूटने से पहले मंडप में जो अफरा-तफरी शुरू हुई है, वैसा खेला महाराष्ट्र में कभी भी नहीं हुआ था.

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बालासाहेब को ये ‘पेंशन बाजी’ स्वीकार ही नहीं थी

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कहा जा रहा है कि फडणवीस-शिंदे की सरकार बालासाहेब ठाकरे के विचारों के आधार पर चल रही है. यह दिखावा मतलब उनका छलावा है. आपातकाल के विरोध में लड़नेवालों को पारिश्रमिक फिर से शुरू करने का निर्णय इस जोड़ी की सरकार ने लिया है. मूलत: बालासाहेब को ये ‘पेंशन बाजी’ स्वीकार ही नहीं थी. आपातकाल को उनका समर्थन एक विशेष वजह के लिए था. देश अनुशासित बने अत: कुछ समय के लिए आपातकाल लगना चाहिए, ऐसी राय उन्होंने व्यक्त की थी. अब स्वतंत्रता सेनानियों की तरह आपातकाल का दूसरा स्वतंत्रता संग्राम बेचकर यह सरकार भी अपने सगे-संबंधियों को मासिक भत्ता देगी. यह बालासाहेब ठाकरे के विचारों के खिलाफ है. जिन्हें यह पेंशन दी जाएगी वो ‘घर’ किसके होंगे ये बताने की जरूरत नहीं है. जनता का पैसा जितना लूटा जा सकता है उतना लूट लिया जाए यही नीति आज के वासु-सपना की सरकार ने अपनाई है.

दो लोगों की सरकार, दो लोगों का मंत्रिमंडल

 महाराष्ट्र में मौजूदा फडणवीस-शिंदे सरकार ये दो ही लोगों की सरकार और दो ही लोगों का मंत्रिमंडल, ऐसा एक अनूठा प्रयोग है, ये कहने में हर्ज नहीं है. राजनीतिक परिवार नियोजन जिसे कहा जाए, वह यही है लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा जबरन नसबंदी किए जाने के कारण ही वासु-सपना सरकार पर ये नौबत आई है. ‘हम दो हमारे चालीस’ का प्रयोग सूरत से गुवाहाटी-गोवा तक चलाया गया, लेकिन मुंबई में आते ही ‘हम दोनों’ पर ही काम चलाना पड़ा. दोनों में से तीसरा कब? दोनों के चार हाथ कब? वासु-सपना की परिवारबेल पर कब पांच-पच्चीस फूल कब खिलेंगे? या फिर स्थाई ‘प्लानिंग’ करनी पड़ेगी? इसे लेकर दोनों पक्ष के बाराती आशंका से ग्रस्त हैं. पंगत बैठ गई है, मंडप सज गया है, लेकिन बैंडबाजा-बारात रास्ते में ही फंस गई है. इसलिए वक्त गुजारने के लिए औरंगाबाद को संभाजीनगर करने पर रोक लगाना, ठाकरे सरकार के जनहितकारी फैसलों पर रोक लगाना, आरे के जंगल को नष्ट करना जैसे कार्य किए जा रहे हैं. इस ‘प्रेम रोग’ से वासु-सपना के सियासी संसार का जो होना है, होगा? लेकिन महाराष्ट्र के मामले में वे कुछ उल्टा-सीधा करना चाहते होंगे, तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. महाराष्ट्र पर खतरे का गिद्ध मंडरा रहा है, परंतु महाराष्ट्र निराश नहीं होगा, लड़ता रहेगा!

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HIGHLIGHTS

  • सामना के जरिए शिवसेना को बोला हमला
  • महाराष्ट्र पर खतरे का गिद्ध मंडरा रहा है
  • कुर्सी वाला ‘प्रेम रोग’ हो गया है शिंदे-फडणवीस को
Devendra fadnavis Maharashtra Cabinet Expension सामना Eknath Shinde
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