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राजनीति से संन्यास ले सकते हैं शरद पवार, विधानसभा चुनाव से पहले कह दी बड़ी बात

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले शरद पवार ने बड़ी बात कह दी है. जिससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि वह जल्दी ही राजनीति से संन्यास ले सकते हैं.

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Vineeta Kumari
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राजनीति से संन्यास ले सकते हैं शरद पवार

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Sharad Pawar Quit Politics: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले शरद पवार ने  बड़ी बात कह दी है. पवार के इस बयान के बाद से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि वह जल्द ही राजनीति से संन्यास लेने वाले हैं. दरअसल, मंगलवार को एक बयान देते हुए शरद पवार ने कहा कि कहीं तो रुकना पड़ेगा. मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता हूं और अब समय आ गया है कि नई पीढ़ी को आगे आना चाहिए.

शरद पवार ले सकते हैं राजनीति से संन्यास

मैं अब तक 14 बार चुनाव लड़ चुका हूं और अब सत्ता नहीं चाहिए. 14 साल से निर्वाचित हो रहा हूं और अब समाज के लिए काम करना चाहता हूं. फिलहाल मैं राज्यसभा में हूं और मेरे पास अभी भी डेढ़ साल का वक्त है. डेढ़ साल के बाद मैं सोचूंगा कि राज्यसभा जाना है या नहीं. मैं अब लोकसभा चुनाव नहीं लड़ूंगा. अब कितने ही चुनाव लड़े जाएं?

6 दशकों से राजनीति में सक्रिय

आपको बता दें कि शरद पवार 1 मई, 1960 से राजनीति से जुड़े हुए हैं. उनकी राजनीति में सक्रिय हुए 6 दशक से ज्यादा का समय हो चुका है. महाराष्ट्र की राजनीति में पवार खुद में एक बड़ा नाम है. 2019 के चुनाव के समय कहा जा रहा था कि पवार का राजनीति करियर अब खत्म होने वाला है तो उस समय पवार ने महाविकास अघाड़ी का निर्माण किया और उन लोगों को जवाब दिया कि वह आज भी सक्रिय हैं.

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कांग्रेस से की राजनीति सफर की शुरआत

पवार ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कांग्रेस से की थी. वहीं, 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा तो पवार कांग्रेस से अलग हो गए और अपनी खुद की पार्टी बनाई, जिसका नाम राष्ट्रवादी कांग्रेस रखा. पवार महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री रह चुके हैं. 1977 में आपातकाल के समय जब कांग्रेस दो गुटों में बंट गया. 

महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री

एक गुट इंदिरा कांग्रेस और दूसरा रेड्डी कांग्रेस. 1978 में महाराष्ट्र में कांग्रेस के दोनों गुटों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, लेकिन सरकार बनाने के लिए दोनों गुट एक हो गए. इस बीच सरकार के अंदर ही मतभेद उत्पन्न हो गया और शरद पवार 40 समर्थकों के साथ पार्टी से अलग हो गए और अपनी अलग पार्टी बनाते हुए सरकार बनाने की पहल शुरू की. जिसके बाद जुलाई, 1978 में 38 वर्ष की उम्र में पवार सीएम बने. हालांकि बाद में इंदिरा गांदी की सिफारिश के बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया और पवार की सरकार गिर गई. 

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