महाराष्ट्र की राजनीति में गुरुवार को बड़ा उलटफेर देखने के मिला. शिवसेना से अलग गुट बनाकर भाजपा के साथ सरकार बनाने वाले एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया है. इसके साथ ही गठबंधन के तौर पर 2019 में जीतने वाली भाजपा एक बार फिर से सत्ता में लौट आई है. वहीं, महाविकास अघाड़ी सरकार अब इतिहास की बात हो चुकी है. लेकिन महाविकास अघाड़ी के रणनीतिकार हाथ से सत्ता जाने का दर्द छुपाए नहीं छुपा पा रहे हैं. शिदे के मुख्यमंत्री बनने पर शरद पवार ने कहा है कि यदि एकनाथ शिंदे को 2019 में ही मुख्यमंत्री बनाते तो यह नहीं होता. इसके साथ ही उन्होंने एकनाथ शिन्दे को मैने फ़ोन पर सुभेच्छा दी.
पार्टी तोड़ने को बताया शिंदे की काबिलियत
शिवसेना में हुई तोड़फोड़ पर शरद पवार ने कहा कि जो विधायक आसाम गए थे, उन लोगों की नेतृत्व बदलने की इच्छा थी. पवार ने आगे कहा कि शिंदे मुख्यमंत्री बनेंगे, इसकी कल्पना किसी को नही थी. खुद शिंदे को भी इस बात की उम्मीद नहीं होगी कि वह मुख्यमंत्री बन जाएंगे.पवार ने कहा कि महाविकास आघाडी में कुछ कमी नहीं थी, लेकिन एकनाथ शिंदे 39 विधायकों को ले जाने में सफल रहे, यह उनकी काबिलियत है. उन्होंने कहा कि एकनाथ शिंदे की तैयारी पहले से हो रही थी, यह रातों-रात नहीं होता है.
शिवसेना कभी खत्म नहीं होगी
वहीं, उन्होंने उद्धव के आगे के सफर के बारे में कुछ भी बोलने से मना कर दिया. शिवसेना को लेकर पवार ने कहा कि शिवसेना न खत्म हो पाई और न ही हो पाएगी. इस के साथ ही उन्होंने कहा कि शिवसेना उद्धव की ही रहेगी. उन्होंने कहा कि हिंदुत्व, राष्ट्रवादी, कांग्रेस यह सब बोलने वाली बात है, इन्हें लोगों को कुछ तो कहना होगा ना, इसलिए यह सब बहाना था. देवेंद्र कहते थे कि पूना येइन (मैं दोबारा आऊंगा). इसे पूना येइन नहीं कह सकते। लोकशाही से बहुमत मिला होता, तो मानते की पुंना येइन.
ईडी का हो रहा है राजनीतिक इस्तेमाल
पांच साल पहले तक हमे ईडी पता तक नहीं था, लेकिन अब इस एजेंसी का इस्तेमाल राजनीति के लिए अच्छे से हो रहा है.
ईडी कई विधायकों की जांच कर रही है.
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दबाव में फडणवीस बने मुख्यमंत्री
वरिष्ठ नेताओं के आदेश पर देवेंद्र को उप मुख्यमंत्री बनना पड़ा. भाजपा में वरिष्ठ नेताओं के आदेश का तोड़ नहो होता. देवेंद्र का चेहरे से ही पता चल रहा था कि वो उप मुख्यमंत्री पद से खुश नहीं है, लेकिन बीजेपी में वरिष्ठों के आदेश को नजरअंदाज नहीं किया जाता. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा पहले भी महाराष्ट्र में हुआ है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद दूसरा मंत्री पद लेना पड़ा है. यशवंत राव चव्हाण, अशोक चव्हाण इसका उदाहरण है.
Source : Pankaj Mishra