महाराष्ट्र (Maharashtra) में एनसीपी (NCP) और कांग्रेस (Congress) से बात बनने के बाद शिवसेना (Shiv Sena) अपने पुराने सहयोगी बीजेपी (BJP) के खिलाफ और आक्रामक होती जा रही है. अपने मुखपत्र सामना (Saamna) में शिवसेना की ओर से बीजेपी के लिए एक बार फिर जहर उगला गया है. सामना में लिखा गया है, महाराष्ट्र में नए समीकरण बनने से कुछ लोगों के पेट में दर्द शुरू हो गया है. श्राप भी दिए जा रहे हैं. 6 महीने से ज्यादा दिन सरकार नहीं टिकेगी, ऐसी भविष्यवाणी (Forecast) की जा रही है. यह नया धंधा लाभदायक भले हो, लेकिन अंधश्रद्धा कानून का उल्लंघन है. 'सामना' में लिखा है, अपनी कमजोरी छुपाने के लिए यह जताने की कोशिश की जा रही है कि हम महाराष्ट्र के मालिक हैं और देश के बाप हैं. ऐसा किसी को लगता होगा तो वे इस मानसिकता से बाहर आएं. यह मानसिक अवस्था 105 वालों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. अधिक समय तक ऐसी स्थिति रही तो मानसिक संतुलन बिगड़ जाएगा और पागलपन की यात्रा शुरू हो जाएगी. कल आए नेता को जनता पागल या मूर्ख साबित करे, ये ठीक नहीं लगता. एक तो नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) जैसे नेता के नाम पर उनका खेल शुरू है और इसमें मोदी (PM Modi) का ही नाम खराब हो रहा है.
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लेख में यह भी कहा गया है, महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन (President Rule In Maharashtra) लग गया है और इसके बाद 105 वालों का आत्मविश्वास झाग बनकर निकल रहा है. मानो अरब सागर की लहरें उछाल मार रही हों. पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने अपने विधायकों को बड़ी विनम्रता से कहा कि बिंदास रहो, राज्य में फिर से भाजपा की ही सरकार आ रही है. कल ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह (BJP President Amit Shah) ने कहा कि राज्य में जिसके पास 145 का आंकड़ा है उसकी सरकार आएगी और ये संवैधानिक रूप से सही है.
सामना में यह भी लिखा गया है, 105 वाले पहले ही राज्यपाल से मिलकर साफ कर चुके हैं कि बहुमत हमारे पास नहीं है, इसलिए सरकार बनाने में हम असमर्थ हैं. अब वो किस मुंह से कह रहे हैं कि हमारी सरकार बनेगी? पहले उनके पास बहुमत नहीं था तो राष्ट्रपति शासन के सिलबट्टे से कैसे बाहर निकलेगा? हम लोकतंत्र और नैतिकता का खून कर 'आंकड़ा' जोड़ सकते हैं, जैसी भाषा महाराष्ट्र की परंपरा को शोभा नहीं देती. फिर ऐसा बोलने वाले किसी भी पार्टी का हो. राष्ट्रपति शासन की आड़ में घोड़ाबाजार लगाने का मंसूबा अब साफ हो गया है.
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लेख में कहा गया है, सत्ता या मुख्यमंत्री पद का अमरपट्टा लेकर कोई जन्म नहीं लेता. खुद को विश्वविजेता कहने वाले नेपोलियन और सिकंदर जैसे योद्धा भी आए और गए. श्रीराम को भी राज्य छोड़ना पड़ा. औरंगजेब आखिर जमीन में गाड़ा गया, तो अजेय होने की लफ्फाजी क्यों? एक तरफ फडणवीस 'राज्य में फिर से भाजपा की ही सरकार' का दावा करते हैं, वहीं नितिन गडकरी ने क्रिकेट का रबड़ी बॉल राजनीति में फेंक दिया है. एक समय हाथ से निकले मुकाबले में जीत मिल सकती है', ऐसा सिद्धांत गडकरी ने जाहिर किया है.
'सामना' ने नितिन गडकरी पर भी हमला बोलते हुए लिखा है, गडकरी का क्रिकेट से संबंध नहीं है. उनका संबंध सीमेंट, इथेनॉल और कोलतार आदि वस्तुओं से है. क्रिकेट का संबंध तो शरद पवार से है. अब पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह भारतीय क्रिकेट बोर्ड के सचिव बन गए हैं, इसलिए भाजपा का क्रिकेट से अधिकृत संबंध जोड़ा गया है. आजकल क्रिकेट खेल कम और धंधा ज्यादा बन गया है और क्रिकेट के खेल में भी राजनीति की तरह 'घोड़ाबाजार' शुरू है. राजनीति में सट्टा बाजार का जोर है. ऐसे ही क्रिकेट में भी शुरू हो जाने से 'जोड़-तोड़' और 'फिक्सिंग' का वो खेल मैदान में शुरू हो गया है, इसलिए वहां खेल की जीत होती है या फिक्सिंग जीतती है इसे लेकर संशय रहता ही है.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो