बीजेपी के सबसे पुराने और बड़े सहयोगी शिवसेना ने बीजेपी के संस्थापक नेता लालकृष्ण आडवाणी के जन्मदिन के मौके पर ही बड़ा झटका दिया है. शायद ही बीजेपी शिवसेना की इस 'गुस्ताखी' को कभी माफ कर पाए, वो भी तब जब बीजेपी का नेतृत्व पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे नेता कर रहे हों. शिवसेना से चुनाव पूर्व गठबंधन होने और बहुमत मिलने के बाद भी बीजेपी के हाथ से महाराष्ट्र जैसे राज्य की सत्ता हाथ आते-आते रह गई. शिवसेना ने ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पद को लेकर ऐसी लंगड़ी मारी कि बीजेपी हाय करके रह गई और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस को इस्तीफा देना पड़ गया.
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मतगणना के दिन ही यह साफ हो गया था कि जिस तरह महाराष्ट्र का जनादेश आया है, उससे शिवसेना के तेवर बदल जाएंगे. हुआ भी वहीं, जैसे-जैसे बीजेपी की सीटें कम होती गईं, शिवसेना अपने तेवर बदलती रही. पूरा चुनाव परिणाम आने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद के लिए जंग लंबा खिंचेगा. हालांकि शिवसेना की सीटें भी कम हुईं, लेकिन बीजेपी की सीटें कम होते देख शिवसेना ने ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पद का फॉर्मूला उछाल दिया और अंत तक उस पर अड़ी रही.
बीजेपी तो पहले यह अनुमान लगाती रही कि शिवसेना अंत तक मान जाएगी, लेकिन इस बार शिवसेना के तेवर पहले के जैसे नहीं थे. संजय राउत लगातार आग उगल रहे थे. रोज संजय राउत आग उगलते बाउंसर फेंक रहे थे और बीजेपी के नेता उसका जवाब देते. शिवसेना की ओर से संजय राउत का आक्रमण लगातार बढ़ता गया और बीजेपी ने एक समय के बाद उम्मीदें खो दीं.
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हालांकि बीजेपी के सूत्रों की ओर से बताया गया कि खुद देवेंद्र फडनवीस ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से बात करने के लिए तीन बार फोन किया, लेकिन उद्धव ने किसी न किसी बहाने बात नहीं की. यहां तक कि महाराष्ट्र में प्रभावी सामाजिक नेता संभाजी भिड़े सुलह कराने के लिए उद्धव ठाकरे से मिलने मातोश्री पहुंचे, तब भी उद्धव नहीं मिले. उसके बाद बीजेपी की सारी उम्मीदें धूल में मिल गईं और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया. हालांकि फडनवीस ने यह भी कहा कि अब भी सारे राजनीतिक विकल्प खुले हुए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव से पहले शिवसेना ने कभी ढाई-ढाई साल के लिए सीएम पद की मांग नहीं की थी.
Source : सुनील मिश्र