सामना: 'FIR में देवेंद्र फडणवीस का नाम ही नहीं', शिवसेना ने बोला हमला

शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए देवेंद्र फडणवीस पर जोरदार हमला बोला है. दरअसल, फडणवीस हर मंच से उद्धव ठाकरे पर हमला बोल रहे हैं. उनके काम पर उंगली उठा रहे हैं. शिवसेना के हिंदुत्व को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं,...

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Shravan Shukla
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Devendra

Devendra Fadnavis( Photo Credit : फाइल)

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शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए देवेंद्र फडणवीस पर जोरदार हमला बोला है. दरअसल, फडणवीस हर मंच से उद्धव ठाकरे पर हमला बोल रहे हैं. उनके काम पर उंगली उठा रहे हैं. शिवसेना के हिंदुत्व को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं, ऐसे में शिवसेना ने सामना के माध्यम से उन्हें निशाने पर लिया है. शिवसेना ने कई मुद्दे पर देवेंद्र फडणवीस को आईना दिखाने की कोशिश की है. इसके अलावा सामना ने उनके राम मंदिर आंदोलन के दौरान की सक्रियता पर भी सवाल उठाए हैं. पढ़ें, आज के सामना का संपादकीय-

विफलता से ग्रस्त विपक्षी नेता व ढलान पर पहुंची गाड़ी को ब्रेक लगाना कठिन होता है. हमारे विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस का ठीक ऐसा ही हाल हो गया है. उनके मालिकों ने उन पर समय रहते नकेल नहीं कसी तो महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी के साथ हादसा होना अटल है. महाराष्ट्र में एक बार हादसा हो गया तो दिल्ली के तंबू के खंभे भी हिलने लगेंगे. शिवसेना की मुंबई की सभा का फडणवीस और उनके लोग अच्छी तरह से जवाब देंगे, ऐसा लगा था. परंतु फडणवीस ने शिवसेना को जवाब देने के लिए चुनाव किया तो उत्तर भारतीय सभा का. उत्तर भारतीय सभा में राज्य के विपक्ष ने महाराष्ट्र की व मुख्यमंत्री की यथासंभव बदनामी की. उनके उत्तर का सूत्र एक ही था मतलब, ‘आपको सत्ता से हटा देंगे!’ फिलहाल राम मंदिर का मुद्दा चर्चा में होने की वजह से उन्होंने अलग भाषा में कहा, ‘आपकी सत्ता का ढांचा हम नीचे खींच लेंगे!’

लोकतंत्र में यह अधिकार सभी को दिया गया है. जिनके पास 145 का बहुमत है वो महाराष्ट्र में सत्ता स्थापित कर सकते हैं. आज 170 का बहुमत ठाकरे सरकार के पास है इसलिए फडणवीस गरजते हैं उससे ढांचा वगैरह गिरेगा नहीं. उन्होंने बाबरी भी सपने में गिराई थी. राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार के मामले में यह स्वप्नदोष संभव नहीं है. असल में अयोध्या में बाबरी गिराई गई तब भाजपा पल्ला झाड़ते हुए भाग खड़ी हुई व वह दिन उनके लिए ‘काला दिन’ था. बाद में उस ‘काले दिन’ को ये लोग विजय दिवस आदि के रूप में मनाने लगे. उस ‘काले दिन’ को लेकर शिवसेना को मिर्ची लगने की कोई वजह नहीं है. बाबरी का ढांचा गिरा तब फडणवीस निश्चित तौर पर कहां थे और उनकी उम्र क्या थी, यह नए सिरे से संशोधन का विषय बन गया है.

फडणवीस कहते हैं वे तो ढांचे के पास प्रत्यक्ष उपस्थित थे तथा बाबरी को गिराने में उनका प्रत्यक्ष सहभाग था. परंतु आडवाणी वगैरह फडणवीस का दावा स्वीकार नहीं करते हैं. पुलिस अथवा सीबीआई के किसी भी आरोप पत्र में भी उनका जिक्र नहीं है. पुलिस ने फडणवीस को साधारण पूछताछ के लिए भी बुलाया, ऐसा दर्ज नहीं है. इसके विपरीत शिवसेना नेताओं का है इसलिए फडणवीस की बाबरी प्रकरण में सहभागिता थी कि नहीं इस बारे में केंद्र सरकार को ही एकाध जांच समिति की नियुक्ति करनी चाहिए. फडणवीस उस युद्ध में थे यह सिद्ध हो गया तो नागपुर में उनका सत्कार किया जाएगा. क्योंकि बाबरी प्रकरण को विपक्ष के नेता ने गंभीरता से ले लिया है और इस बारे में उन पर अन्याय हो रहा है, ऐसी उनकी भावना है.। यह ठीक नहीं है.

फडणवीस उत्तर भारतीयों की सभा में बहुत कुछ बोल गए. उन्होंने कटाक्ष करने का प्रयास किया. वह भी नहीं जमा. मराठी लोगों की सभा होती है तो वे अलग बात करते हैं और हिंदी भाषियों की सभा में कुछ अलग ही कहते हैं. कल संपन्न हुई सभा में उन्होंने ‘हनुमान चालीसा’ पढ़ी. पांव में चप्पल पहनकर ‘हनुमान चालीसा’ पढ़ने की हमारी परंपरा नहीं है. ये भाजपावालों को कोई बताए.

उत्तर भारतीय श्रीराम व हनुमान के भक्त हैं. श्रीराम महाराष्ट्र में आए थे. नासिक के पंचवटी व नागपुर के करीब रामटेक प्रभु श्रीराम के आने से पावन हो गया. परंतु नागपुर के फडणवीस ने श्रीराम के सत्य वचनों का गुण ग्रहण नहीं किया है, ऐसा प्रतीत होता है. वे फिलहाल सिर्फ झूठ और झूठ ही बोल रहे हैं. राज्य छोड़ना पड़ा तब श्रीराम ने वह निर्णय स्वीकार किया. वे विफलता से ग्रस्त हुए, ऐसा रामायण में कहीं नहीं दिखा. सीता माता ने भी उस निर्णय को स्वीकार किया, यह खास बात है. परंतु फडणवीस की राम भक्ति खोखली है. नाम राम का लेते हैं व बर्ताव विभीषण जैसा करते हैं.

फडणवीस के विफलता से ग्रस्त होने के बाद से महाराष्ट्र की राजनीति का स्तर गिरा है, ये तय है. फडणवीस को अपने राज्य में अच्छा कुछ भी नहीं दिखता है. उत्तर भारतीयों की सभा में उन्होंने गंगा में बहते गए हजारों शवों पर टिप्पणी नहीं की. उसी तरह महाराष्ट्र से जो लाखों उत्तर भारतीय कोविड काल में उत्तर प्रदेश गए उन्हें योगी की भाजपा सरकार ने प्रवेश नहीं करने दिया. चार दिन सीमा पर दाने-पानी के बगैर भूखे रखा. इस अमानवीय बर्ताव पर श्रीराम भी दुखी हुए. परंतु फडणवीस के मन का ‘राम’ नहीं जागा. इसे कैसा लक्षण माना जाए? सत्ता जाने का इतना मानसिक परिणाम होना चाहिए?

बाघ का फोटो खींचने से बाघ नहीं बना जा सकता है, खुली छाती से संकट का मुकाबला करना पड़ता है, ऐसा उन्होंने मुख्यमंत्री ठाकरे को सुनाया है. शिवसेना मतलब बाघ पर सवार हुए मर्दों की पार्टी है व आज उद्धव ठाकरे उनका नेतृत्व कर रहे हैं. ठाकरे नहीं होते तो महाराष्ट्र में मराठी स्वाभिमान और अस्मिता खत्म ही हो गई होती. शिवसेना ने बलिदान दिया व समस्त ठाकरे परिवार ने बाघ के सीने के साथ संघर्ष किया इसलिए आज मुंबई सहित महाराष्ट्र दिल्ली के समक्ष झुके बगैर खड़ा है. फडणवीस और उनके सभी बापजादे महाराष्ट्र की गर्दन दबोचने का सपना देख रहे थे, ‘महाराष्ट्र दिन’ पर बाजू पर काली पट्टी बांधकर 105 शहीदों का अपमान कर रहे थे. उस समय ‘ठाकरे’ अखंड महाराष्ट्र के लिए बाघ का पंजा चला रहे थे.

आज मुंबई-विदर्भ महाराष्ट्र से तोड़ने की किसी की औकात नहीं है. तो सिर्फ ठाकरे और शिवसेना की वजह से ही. फडणवीस की गाड़ी ढलान पर पहुंच गई है और घड़ा घूम रहा है. वे विफलता से ग्रस्त होने की वजह से निरंकुश हो गए हैं. यह ऐसे ही रहा तो महाराष्ट्र में विपक्ष का अस्तित्व खत्म हो जाएगा. लोकतंत्र के लिए यह दृश्य अच्छा नहीं है.

HIGHLIGHTS

  • शिवसेना ने देवेंद्र फडणवीस को सीधे निशाने पर लिया
  • सामना के संपादकीय में देवेंद्र पर फोकस
  • विपक्ष का वजूद खत्म होना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं

Source : News Nation Bureau

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