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महाराष्ट्र की सियासत में CM पद को लेकर उथल-पुथल जारी, इन तीन चेहरों पर जनता करेगी फैसला या होगा कोई बड़ा खेल; समझें

Maharashtra Politics: पिछले पांच वर्षों की सियासी उथल-पुथल, गठबंधन बदलाव और आरक्षण विवाद के बीच महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में जनता की प्राथमिकताएं नए गठबंधन, योजनाओं और जातीय समीकरणों पर निर्भर होंगी.

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Ritu Sharma
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Maharashtra Assembly Elections 2024

Maharashtra Assembly Elections 2024

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Maharashtra Assembly Elections 2024: महाराष्ट्र की राजनीति पिछले पांच सालों में अभूतपूर्व बदलावों से गुजरी है. इस दौरान तीन मुख्यमंत्री बने और गठबंधन टूटने और बनने का सिलसिला जारी रहा, लेकिन अब महाराष्ट्र की जनता को अगले चुनावों में यह तय करना होगा कि वे इन सियासी उठापटक को किस नजरिए से देखते हैं. महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव की तारीखें नजदीक हैं और 16 अक्टूबर से राजनीतिक दलों की परीक्षा शुरू होगी. चुनावी मौसम में ये सवाल खासा अहम हो जाता है कि पिछले पांच सालों के राजनीतिक घटनाक्रम का आगामी चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

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शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन टूटना और महाविकास अघाड़ी का गठन

आपको बता दें कि 2019 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी ने गठबंधन में चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें बहुमत मिला. लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर सहमति न बनने के कारण गठबंधन टूट गया. इसके बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी का गठन किया और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने. यह गठबंधन राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आया, लेकिन सियासी स्थिरता ज्यादा दिन तक नहीं टिकी.

अजित पवार का विद्रोह और सत्ता में बदलाव

वहीं आपको बता दें कि महाविकास अघाड़ी की सरकार ढाई साल तक चली, लेकिन 2022 में एकनाथ शिंदे की अगुवाई में शिवसेना के विधायकों के बागी होने से सत्ता संतुलन बिगड़ा. इसके बाद शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर नई सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बने. अजित पवार ने भी एनसीपी से अलग होकर शिंदे-बीजेपी गठबंधन का साथ दिया और उपमुख्यमंत्री बने. इस बदलाव ने राज्य में शिवसेना और एनसीपी, दोनों पार्टियों में विभाजन का नया अध्याय लिखा.

आरक्षण मुद्दा और जातीय समीकरण

साथ ही आपको बता दें कि राजनीतिक उठा-पटक के बीच महाराष्ट्र में आरक्षण का मुद्दा भी तेज हो गया. मराठा आरक्षण के लिए हो रहे आंदोलनों ने राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया. ओबीसी और धनगर समुदाय की भी आरक्षण को लेकर मांगे तेज हो गईं, जिससे सरकार को संतुलन साधने की चुनौती मिली. मराठा आरक्षण के तहत कुनबी प्रमाणपत्र और ओबीसी नेताओं के विरोध ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया.

नई पार्टियां और गठबंधन की चुनौतियां

बता दें कि पिछले चुनाव में दो प्रमुख गठबंधन थे जो बीजेपी-शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी है. अब शिवसेना और एनसीपी दो हिस्सों में बंट गए हैं, जिससे चुनावी समीकरण बदल गए हैं. अब शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी बीजेपी के साथ हैं, जबकि उद्धव ठाकरे और शरद पवार महाविकास अघाड़ी में हैं. इस बार के चुनाव में मतदाताओं को पार्टी के पारंपरिक विचारधाराओं और नए गठबंधनों के बीच फैसला करना होगा. बता दें कि एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ''चुनाव अब वैचारिक नहीं बल्कि राजनीतिक गठबंधन और जातीय समीकरणों पर आधारित हो चुका है.''

योजनाओं और वादों की राजनीति

इसके अलावा आपको बता दें कि मौजूदा महायुति सरकार ने हाल ही में कई योजनाओं की घोषणा की है, जिनमें 'लाड़की बहिन योजना' और बेरोजगार युवाओं के लिए भत्ता शामिल हैं. इसके जरिए सरकार मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है. अब इसमें देखना होगा कि मतदाता पांच साल की सियासी उठापटक और गठबंधनों की राजनीति को किस नजरिए से देखते हैं और आरक्षण, बेरोजगारी विकास जैसे मुद्दों पर अपना मत देते हैं.

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