त्रिपुरा में रविवार को 20 नगर निकायों में सत्तारूढ़ भाजपा की शानदार जीत के बावजूद राज्य की राजनीति में एक नया प्रवेश करने वाली तृणमूल कांग्रेस 14 महीने में त्रिपुरा की राजनीति में एक मजबूत राजनीतिक ताकत बनकर उभरी है. भाजपा शासित इस पूर्वोत्तर राज्य में दो साल बाद होने वाला विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण है. राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार तृणमूल के एक दुर्जेय दल के रूप में उभरने के साथ 2023 के विधानसभा चुनावों में भाजपा, माकपा के नेतृत्व वाले वाम दलों और तृणमूल कांग्रेस के बीच बहुकोणीय मुकाबला होगा, यह स्पष्ट है.
हालांकि राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) ने अभी तक पार्टी-वार वोट प्रतिशत की घोषणा नहीं की है. अनौपचारिक गणना से पता चलता है कि त्रिपुरा में निकाय चुनावों में भाजपा को 59 प्रतिशत वोट मिले, उसके बाद वामपंथियों को 19.65 प्रतिशत, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को 16.39 प्रतिशत और कांग्रेस को 2.07 प्रतिशत वोट मिले. गुरुवार को हुए निकाय चुनाव में राज्य के कुल 27 लाख मतदाताओं में से लगभग पांच लाख शहरी मतदाता वोट डालने के पात्र थे. एसईसी के अनुसार 81 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है.
सभी विपक्षी दलों द्वारा चुनाव पूर्व हिंसा के आरोपों के बीच भाजपा ने पहले सात शहरी स्थानीय निकायों में निर्विरोध 112 (34 प्रतिशत) सीटें जीती थीं और रविवार को परिणाम घोषित होने के बाद पार्टी ने राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अगरतला नगर निगम (एएमसी) सहित शेष 12 नगरपालिका में सत्ता हथिया ली. भाजपा उम्मीदवारों ने एएमसी की सभी 51 सीटों और नगर परिषदों और नगर पंचायतों की 165 सीटों पर जीत हासिल की. एसईसी के अधिकारियों के अनुसार मुख्य विपक्षी दल माकपा ने कैलाशहर, अंबासा और पानीसागर में तीन नगर निकायों में तीन सीटें जीतीं, जबकि टीएमसी ने अंबासा नगर परिषद में एक सीट जीती. तृणमूल कांग्रेस ने 51 में से 27 सीटों पर दूसरा स्थान हासिल किया. प्रतिष्ठित एएमसी ने सत्तारूढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी माकपा के नेतृत्व वाले वाम दलों दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की.
हालांकि वामपंथी दलों और टीएमसी ने एएमसी और 19 अन्य शहरी स्थानीय निकायों नगर परिषदों और नगर पंचायतों के निकाय चुनावों में सभी 334 सीटों पर उम्मीदवार नहीं खड़े किए, जिसमें अभूतपूर्व राजनीतिक हिंसा, हमलों और धमकी का आरोप लगाया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, कई केंद्रीय नेताओं और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने राज्य के नेताओं को निकाय चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन के लिए बधाई दी है. एक क्षेत्रीय अंग्रेजी दैनिक नॉर्थ ईस्ट कलर्स के संपादक देब ने बताया, दक्षिण भारत की पार्टी को छोड़कर भारत में किसी भी क्षेत्रीय दल, जो मुख्य रूप से नेता केंद्रित हैं, ने अब तक अपने मूल क्षेत्र से बाहर चुनावी सफलता हासिल नहीं की है.
2018 के बाद से चुनावी झटकों की अपनी श्रृंखला के बाद मुख्य विपक्षी माकपा को हाल ही में एक और बड़ा झटका लगा, जब उसके दो शीर्ष नेताओं राज्य सचिव गौतम दास और वाम मोर्चा के संयोजक बिजन धर का हाल ही में कोविड-19 के कारण निधन हो गया. आदिवासियों के बीच अपना आधार फिर से हासिल करने के लिए पार्टी ने हाल ही में आदिवासी नेता जितेंद्र चौधरी को राज्य सचिव नियुक्त किया है.
HIGHLIGHTS
- त्रिपुरा में निकाय चुनावों में भाजपा को 59 प्रतिशत वोट मिले
- टीएमसी ने 51 में से 27 सीटों पर दूसरा स्थान हासिल किया