ओडिशा उच्च न्यायालय ने कथित तौर पर जमीन हड़पने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत पांडा और उनकी उद्यमी पत्नी जागी मंगत पांडा के खिलाफ दर्ज एक प्राथमिकी को निरस्त करने से इनकार कर दिया है. पांडा के परिवार के स्वामित्व वाली एक कंपनी द्वारा दलित समुदाय की जमीन कथित तौर पर हड़पने के लिए यह प्राथमिकी 31 अक्टूबर को दर्ज की गई थी.
यह प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत राज्य पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) द्वारा दर्ज की गई थी. ओडिशा इन्फ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड (ओआईपीएल) द्वारा इस संबंध में दाखिल एक याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति बी पी राउत्रे ने शुक्रवार को उच्च न्यायालय द्वारा इससे पहले दंपति को दिये गये अंतरिम संरक्षण को भी वापस ले दिया.
उच्च न्यायालय ने पांच नवम्बर को एक अंतरिम आदेश में पुलिस को मामले के सिलसिले में दंपति को गिरफ्तार करने से रोक दिया था. प्राथमिकी में कहा गया है कि भूमि शुरू में अनुसूचित जाति के 22 लोगों की थी और विक्रेताओं ने उन्हें कंपनी के एससी समुदाय से एक कर्मचारी को बेच दिया था. ईओडब्ल्यू ने कहा कि यह जमीन 2010 से 2013 के बीच रबी सेठी के नाम पर खरीदी गई और इसके बाद 2016 और 2019 मे ओआईपीएल को बेच दी गई और सेठी को कभी भी इसका कब्जा नहीं मिल पाया.
आपको बता दें कि जगी पांडा ने भी बैजयंत पांडा पर ये आरोप लगाया है कि जब से बैजंत पांडा भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं, तब से मुख्यमंत्री व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने में जुटे हुए हैं. जगी इतने पर ही चुप नहीं हुईं उन्होंने आगे आरोप लगाया कि, ओटीवी पर निरंतर बड़े पैमाने पर हो रहे भ्रष्टाचार का पदार्फाश करने के लिए बीजू जनता दल काफी नाराज है. इनमें कोविड फंड को लेकर हेरफेर भी शामिल है.
Source : News Nation Bureau