पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद अभी भले ही नतीजों का इंतजार है, लेकिन एग्जिट पोल आ गए हैं। इन एग्जिट पोल्स में खास बात यह है कि लगभग सभी पंजाब में बीजेपी-अकाली के सत्ता से बाहर होने का अनुमान लगा रहे हैं।
इसका सीधा मतलब यह हुआ कि प्रकाश सिंह बादल राज्य में हैट्रिक लगाने से चूके सकते हैं और सत्ता आम आदमी पार्टी (आप) या कांग्रेस के हाथ में जा सकती है।
कांग्रेस की मौजूदगी पंजाब में पहले से है लेकिन बादल की राजनीति में सबसे बड़ी सेंध 'आप' ने लगाई है। आईए, नजर डालते हैं कि केजरीवाल ने कैसे बादल का मौसम बिगाड़ा और क्यों वह ऐसा करने में कामयाब रहे।
लोगों के पास क्या थे अकाली-बीजेपी के खिलाफ मुद्दे
1. किसानों की आत्महत्या: कभी पूरे देश के लिए अन्न पैदा करने में सक्षम रहे पंजाब से पिछले कुछ वर्षों से लगातार किसानों के आत्महत्या की खबरें आई हैं। विपक्षी पार्टियों ने भी इसे मुद्दे को जोर-शोर से उठाया।
2. ड्रग्स मुद्दा: पिछले एक दशक में पंजाब में बढ़े नशे के व्यापार का मुद्दा भी अकालियों-बीजेपी के खिलाफ गया। पिछले दो सालों में तो इस मुद्दे ने खूब जोर पकड़ा। खासकर, फिल्म 'उड़ता पंजाब' को लेकर जब बहस शुरू हुई यह मामला और गर्माया और पूरे देश में इस पर चर्चा हुई।
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3. भ्रष्टाचार से लेकर नशे के व्यापार तक में बादल परिवार का नाम: अकाली दल-बीजेपी के कई नेताओं पर आरोप लगते रहे कि राज्य में सैंड माफिया से लेकर ड्रग माफिया, ट्रांसपोर्ट माफिया या कह लीजिए कि जो कुछ गलत होता रहा, उसका सीधा कनेक्शन बादल परिवार या इस गठबंधन के किसी नेता से जुड़ता चला गया। जब भी यह मुद्दे उठे, अकाली सरकार ने उन्हें गंभीरता से तवज्जो देने की जहमत नहीं उठाई।
4. सतलुज यमुना नहर लिंक: इस मुद्दे पर अकाली सरकार कभी भी कोई ठोस स्डैंड लेती नहीं दिखी और केवल राजनीतिक बयानबाजी होती रही। दूसरी ओर, विपक्षी पार्टियों ने इसे मुद्दे को खूब हवा दी।
5. उम्र और मुख्यमंत्री चेहरा: प्रकाश सिंह बादल 89 साल के हो चुके हैं। बीजेपी पूरे देश में परिवारवाद के खिलाफ लड़ाई करती रही है। यूपी में मुलायम सिंह यादव परिवार को पार्टी ने मुद्दा बनाया, लेकिन पंजाब में यही पार्टी बादल परिवार की राजनीति पर चुप रही और इसने भी आप और कांग्रेस को फायदा पहुंचाया।
क्यों सफल हुई 'आप'
1. ऐसा लगता है कि दिल्ली की जीत के फॉर्मूले ने आप के लिए पंजाब में भी काम किया। इसका संकेत लोकसभा चुनाव के दौरान ही मिल गया था जब पार्टी पूरे देश में मुंह की खाने के बावजूद पंजाब में चार सीटें जीतने में कामयाब रही थी। दरअसल, पंजाब में भी अप्रवासी भारतीयों के समर्थन के बूते आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़ा और सफल नजर आ रही है।
2. नशे के खिलाफ अभियान: विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी ने पंजाब में नशे के खिलाफ जोर-शोर से अभियान चलाया। नशे के खिलाफ लड़ाई केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित नहीं रही। इसके लिए राज्य भर में पार्टी ने अपने उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगा दी कि वे ड्रग लेने वाले नशे के आदी लोगों और नशा मुक्ति केंद्रों के बारे में जानकारी व आंकड़े इकठ्ठे करें। उनके लिए काम करें। यह अभियान सफल साबित हो रहा है।
3. नशे के खिलाफ अभियान से केवल पार्टी को एक फायदा नहीं हुआ बल्कि वह जमीनी स्तर पर पहुंचने में कामयाब रही। यही कारण रहा कि कांग्रेस और बीजेपी-अकाली वाली पंजाब की राजनीति में आम आदमी पार्टी एक नई पहचान बनाने में कामयाब रही।
4. आप का घोषणापत्र: आप के लोकलुभावन मैनिफेस्टो ने भी बहुत हद तक पार्टी के लिए काम किया। दिल्ली में किए गए कामों की छाप इस घोषणापत्र पर साफ नजर आई। दिल्ली की तर्ज पर बिजली बिल में रियायत देने का वादा 'आप' ने पंजाब की जनता से किया। डेप्युटी सीएम का पद दलित नेता को देने सहित आंगनबाड़ी, आशा और मिड डे मील के लिए काम करने वालों की सैलरी दोगुना करने की बात कही गई। इसके अलावा गांव-शहर में हेल्थ क्लीनिक में फ्री टेस्ट और बेघर लोगों के लिए घर का वादा भी किया।
HIGHLIGHTS
- एग्जिट पोल में आप और कांग्रेस सरकार बनाने के सबसे करीब हैं
- 'आप' की सरकार बने या नहीं, लेकिन केजरीवाल ने बादल का खेल जरूर बिगाड़ दिया है
- किसानों की आत्महत्या से लेकर ड्रग्स और तमाम माफियाओं के सत्ता से कनेक्शन ने अकाली सरकार को कटघरे में ला दिया
Source : Vineet Kumar