नाबालिग के साथ यौन शोषण के आरोपी आसाराम के साथ सहअभियुक्त छिंदवाड़ा आश्रम की हॉस्टल वार्डेन शिल्पी के द्वारा दायर याचिका पर जोधपुर हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. हॉस्टल वार्डेन शिल्पी द्वारा जोधपुर हाई कोर्ट में दायर 'एसओएस' यानी सस्पेंसन ऑफ सेंटेंस की याचिका पर बुधवार को सुनवाई पूरी हो गई। इसके साथ ही न्यायाधीश विजय विश्नोई ने इस याचिका पर फ़ैसला सुरक्षित रख दिया है। बता दें कि अगर सहअभियुक्त शिल्पी को जमानत मिल जाती है तो आसाराम को भी आगे राहत मिल सकती है। कोर्ट में शिल्पी की और से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश बोड़ा ने उनका पक्ष रखा. वहीं पीड़िता की और से पी सी सोलंकी ने पहले ही अपना पक्ष रख दिया था। बुधवार को अभियोजन और अतरिक्त महाधिवक्ता शिवकुमार व्यास ने अपना पक्ष रखा। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.
20 साल की सजा दी थी निचली अदालत ने
SC/ST कोर्ट पीठासीन अधिकारी मधुसूदन शर्मा की कोर्ट ने आसाराम मामले की सह अभियुक्त तथा छिंदवाड़ा आश्रम की हॉस्टल वार्डन शिल्पी को सहअभियुक्त मानते हुए 25 अप्रैल को अपना फैसला सुनाया था. जिसमें कोर्ट ने सहअभियुक्त मधुसूदन को 20 साल की कैद की सजा सुनाई था.
सजा के खिलाफ अपील दायर करते हुए सजा स्थगित कर जमानत पर रिहा करने की बाबत 'एसओएस' अर्थात सस्पेंसन ऑफ सेंटेंस की याचिका दायर की गई थी।
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सहअभियुक्त शिल्पी को राहत मिलने पर आसाराम की राह होगी आसान
अगर इस मामले में शिल्पी की याचिका के अनुरूप राहत मिलती है तो वह जमानत पर बाहर आ जायेगी, 20 साल की सजा पर अंतरिम रोक लगती है तो आसाराम के लिए भी याचिका के मार्फ़त राहत की राह निकल सकती है।
Source : News Nation Bureau