एक तो औलाद का न होना, होना तो होते ही मर जाना. उसके बाद भी यही सिलसिला लगातार तीन शादियां करने के बाद भी तीनों बीबियों के साथ बदस्तूर जारी रहना. इसके बाद मातमी पर्व मुहर्रम के मौके पर मांगी गई मुराद के रूप औलाद का पैदा होना व उसका जीवित रहना. जी हाँ, कुछ इसी प्रकार से बदलते घटनाक्रम की ही एक रस्म है, माउंट आबू में बनने वाला केक का ताज़िया. जो साल-दर-साल पिछले 80 वर्षों से आज भी बदस्तूर मातमी पर्व मुहर्रम के मौके पर मनायी जा रही है. जैसे केक बनाते हैं मैदा, शक्कर, घी, ड्राय फ्रूट्स, जैम, जैली इत्यादि से, ठीक वैसे ही यह भी प्रति वर्ष बनाया जाता है. फर्क सिर्फ इतना है कि इसे शक्ल कहें या स्वरूप या आकार, वह इसे ताजिए के रूप की दी जाती है. उसके बाद बाकायदा इसे मुहर्रम की सवारी दी जाती है. परंपरागत गत रूप से झील या एनीकट के पानी मे डालकर ठंडा किया जाता है.
देश की आजादी के पूर्व इस परंपरा की शुरुआत हुई थी. परिवार के सदस्यों के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार मोहम्मद रमजान जो पेशे से एक बेकर्स थे. उनके घर में कोई औलाद नहीं होती थी. लंबे समय से यह सिलसिला बदस्तूर जारी था. यदि रमजान के घर औलाद हो भी जाती तो वह जीवित नहीं रहती. इसी समस्या के निदान के रूप में मोहम्मद रमजान ने 3 शादियां तक कर लीं. लेकिन तीनों ही बीवियों के साथ यही घटनाक्रम जारी रहा.
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हैरान हताश परेशान मोहम्मद रमजान ने एक बार ऐसे ही सोच कर कि इस बार क्यों न मुहर्रम पर मन्नत ही मान ली जाए कि उनकी औलाद हो और वह जीवित रहे तो वह हर साल के का ताजिया मुहर्रम के पर्व पर चढ़ाते रहेंगे. इससे मन मांगी मुराद पूरी हो न हो या फिर कुछ और वह आखिरकार हो ही गई. सन् 1941 में मोहम्मद रमजान के घर में तीसरी बीवी से मोहम्मद उमर उर्फ बुंदू भाई का जन्म हुआ जो आज भी जीवित हैं और उनकी उम्र 80 वर्ष हो चुकी है और आज उनके पोतों व नवासों के द्वारा यह रस्म निभाई जा रही है इस बार 6 फीट लंबा केक का ताजिया बनाया गया है.
माउंट आबू के स्थानीय लोगों में तो इसके ताजिए को देखने की ललक रहती ही है पर यहां पर आने वाले सैलानियों के लिए भी यह कम आकर्षण का केंद्र नहीं रहता. सैलानी भी इसी केक के ताजिए के इर्द-गिर्द ही मंडराते हुए नजर आते हैं. यह तो पता नहीं क्या बात है लेकिन जो भी इसे देखता है एक ही बार आश्चर्य से, रोमांच से भरकर से एकटक देखता ही रहता है. एक तो मन्नत का पूरा होना वह मन्नत के पूरे होने की रस्म को पांचवी पीढ़ी तक निरंतर निभाते आना यह भी एक अपने आप में रोमांचक कहानी है, जो आज भी जारी है.
Source : लालसिंह फौजदार