राजस्थान में ऐसे तो चालीस हज़ार गांव हैं लेकिन जयपुर के निकट कुंडा में स्थापित 'हाथी गांव' इन सबसे न्यारा है. इसे उन हाथियों का ठिकाना बनाया गया है जो देसी-विदेशी सैलानियों को अपनी पीठ पर लाद कर ऐतिहासिक आमेर किले के दर्शन कराते हैं, मगर कोरोना का कहर एलिफेंट विलेज को वीरान कर रहा है. 12 दिन पहले तक आमेर महल में शान की सवारी कराने वाली हाथी और उसके साथी महावत आज सकते में है. पहले आमेर महल वीरान हुआ अब एलिफेंट विलेज की भी रंगत उड़ती नजर आ रही है. ये हाथी अपने बाड़े में एक तरहसे कैद हैं मानो उनको क्वारेंटाइन मोड पर रखा गया हैं.
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यह है भारत का पहला हाथी गांव हैदेशी हो या विदेशी पर्यटक सभी की चाहत हाथी पर सवार होकर किले तक जाने की रहती है. हाथी मालिक संगठन से जुड़े आसिफ का कहना है, 'हमारे और हमारे लाडले हाथियों के लिए ये गांव बड़ी नियामत है. 120 बीघा धरती पर फैले इस गांव में जब सजे धजे हाथियों ने इसको अनोखा बना दिया है, जहां हाथियों की देखभाल की जाती है. मगर कोरोना के कारण हाथी गांव की रंगत ही समाप्त हो रही है.
उन्होंने ये भी कहा, 'डाॅक्टर की सलाह पर इनकाे सुबह शाम चंद कदम चलने की इजाजत है ताकि इनकी सेहत ठीक रहे. विलेज के डाॅक्टर जयपुर में मौजूद 100 से ज्यादा हाथियों का चेकअप कर रहे हैं. इनमें 65 हाथी विलेज में हैं. बाकी आमेर और जलमहल के पास रहते हैं. सरकार के निर्देश के बाद विलेज में टूरिस्ट का आना जाना बंद हाे चुका है. केवल उनके महावत ही राेज उनकाे चारा और पानी दे रहे हैं.'
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इन दिनों एक हाथी पर राेज खाने-पीने पर करीब 1500 से 2000 का का खर्चा है. इसमें गन्ना, कड़वी, रजका और 5 किलो आते की राेटी शामिल है. हाथी मालिक का कहना है कि राेज का खर्चा निकालना मुश्किल हाे रहा है. बीते दिनाें एक मिटिंग के बाद हाथी कल्याण से 600रुपए पर हाथी के हिसाब से मिलना तय हुआ है.
कोरोना के कारण पर्यटन तो चौपट हो ही चुका है,अब हाथी गांव पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं. देशी विदेशी पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र हाथी गांव पर संकट है. हाथी, महावत सभी दुखी हैं. ऐसे में सरकार को पहल कर इस संकट की घड़ी में हाथी गांव को बचाने जरूरत है.
Source : News Nation Bureau