राजस्थान में विधानसभा चुनाव को भले ही मात्र डेढ़ साल बचे हों, लेकिन गहलोत सरकार अभी से चुनावी मोड में आ चुकी है. चाहे वह जनहित से जुड़ी घोषणाओं का मामला हो, या फिर अपने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को संतुष्ट करने की कवायद. मगर इस बीच गहलोत सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती मंत्रियों और विधायकों के बीच बढ़ती नाराजगी है. हालात ये हैं कि तमाम कोशिशों के बावजूद मंत्रियों से लेकर विधायकों तक की नाराजगी की लिस्ट लगातार लंबी होती जा रही है. आलम यह है पिछले 1 महीने में ही करीब एक दर्जन विधायक खुलकर गहलोत सरकार के मंत्रियों की कार्यशैली की शिकायत कर चुके हैं. यहां तक कि कई विधायक खुलेआम यह कहने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं कि अगर मंत्रियों का यही व्यवहार रहा तो सरकार की वापसी का सपना सपना ही रह जाएगा.
विधायकों की नाराजगी को लेकर गहलोत सरकार में मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास और मुरारी लाल मीणा का कहना है कि यह तो कांग्रेस का कल्चर है . यहां सभी को बोलने की आजादी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे बीच लड़ाई चल रही है. जहां तक विधायकों की नाराजगी की बात है तो मिल बैठकर बात कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी में तो किसी को बोलने की आजादी ही नहीं है.
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भाजपा ने कसा तंज
वहीं, कांग्रेस की आपसी खींचतान पर भाजपा का कहना है कि पूरे साढ़े 3 साल कांग्रेस में सिर्फ कुर्सी बचाने का ही काम हुआ है. यह सरकार अंतर्विरोधों से घिरी हुई है. विधायक मंत्रियों के बीच लगातार गुटबाजी और नाराजगी की तस्वीरें सामने आ रही है, जिसका खामियाजा जनता को उठाना पढ़ रहा है.
संगठन और सरकार दोनों की चुनौतियां
ऐसे में देश के सभी राज्यों से एक-एक कर बाहर हो रही कांग्रेस पार्टी और सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती है कि आखिर मंत्रियों और विधायकों के बीच बढ़ रही दूरी और नाराजगी को कैसे ठीक किया जाए. अब देखना ये होगा कि गुटबाजी और आपसी सिर फुटव्वल की वजह से एक के बाद एक राज्य की सत्ता से बाहर हो रही कांग्रेस के नेता इससे सबक लेते हैं या इस आपसी मनमुटाव को चुनावी हार में तब्दील कर बदला लेते हैं.
Source : Lal Singh Fauzdar