महापुरुषों की महानता को लेकर एक बार फिर राजस्थान की सियासत गरमा गई है. राजस्थान सरकार के जयपुर में शिक्षा विभाग की तरफ से पाठ्यक्रम में कई बड़ी चूक सामने आई है. यहां इतिहास के चर्चित हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की हार-जीत को लेकर अलग अलग कक्षाओं में प्रदेश के बच्चे अलग-अलग तथ्य पढेंगे. दरअसल यहां 7वीं में पढ़ाया जाएगा कि इस युद्ध में प्रताप को विजय मिली थी, जबकि 12वीं के बच्चे पढ़ेंगे कि प्रताप को पराजय का मुंह देखना पड़ा था. हार-जीत के यह दोनों ही तथ्य इस बार सिलेबस में नए सिरे से शामिल किए गए हैं.
महाराणा प्रताप और अकबर में से एक को महान मानने को लेकर प्रदेश में पहले भी कई बार कांग्रेस-भाजपा आमने सामने हो चुकी है. हालांकि नए सिलेबस में प्रदेश के स्कूली बच्चे अब महाराणा प्रताप महान ही पढेंगे. प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के बाद अकबर और प्रताप में कौन महान, इसे लेकर बहस छिड़ गई थी. तब से ही निगाहें नए सिलेबस पर टिकी हुई थीं.
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नए सिलेबस में दसवीं कक्षा में अकबर के चैप्टर में कुछ बदलाव किया है. पहले लिखा था कि 1562 में अकबर ने बाज बहादुर से मालवा चुनार और गोडवाना का किला जीता था. अब नए सिलेबस में इसको बदलकर 1516 कर दिया गया है. इसके हिसाब से देखा जाए तो अकबर ने जन्म से पहले ही यह किला जीत लिया था. क्योंकि अकबर का जन्म ही 1542 में हुआ था.
7वीं कक्षा में है- मेवाड़ के अभिलेखों में प्रताप की जीत
सातवीं कक्षा के सामाजिक चेप्टर-20 में राजस्थान के राजवंश एवं मुगल में महाराणा को वीर शिरोमणि प्रताप महान लिखा गया है. इसमें नए सिरे से जोड़े गए तथ्य में कहा गया है कि मुगल इतिहास ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर को विजयी बताया है, जबकि मेवाड़ के अभिलेखों में प्रताप की विजय होना लिखा है. इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि अकबर अपने एक भी उद्देश्य में सफल नहीं हुआ था. इसमें प्रताप को जननायक बताते हुए लिखा है कि उन्होंने अंतिम समय तक मातृभूमि के लिए मर मिटने वाला आदर्श प्रस्तुत किया.
12वीं में है- हल्दीघाटी के युद्ध में पराजित हो गए थे प्रताप
12वीं कक्षा की इतिहास के चेप्टर-4 मुगल आक्रमण-प्रमाण और प्रभाव में नया तथ्य यह जोड़ा गया है कि हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप की पराजय हुई थी. पराजय के कारण गिनाते हुए लिखा गया है कि प्रताप ने परंपरागत युद्ध शैली अपनाई. प्रतिकूल परिस्थितियों के हिसाब से प्रताप में धैर्य का अभाव था. मेवाड़ सेना मैदान में लड़ने में अधिक सक्षम नहीं थी. पहाड़ी क्षेत्र में हाथियों को काम में लेना उचित सैन्य निर्णय नहीं था. प्रताप के पास अंतिम निर्णायक दौर के लिए सैनिक दस्ता नहीं था.
Source : News Nation Bureau