जयपुर में स्थित बच्चों के सरकारी अस्पताल जेके लोन में एक बच्चे को 17.50 करोड़ का इंजेक्शन लगाया गया. ये इंजेक्शन 23 महीने के हृदयांश को लगाया गया है. जो दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मसक्यूलर अट्रॉफी से जूझ रहा था. अगर इस बच्चे को दुनिया में सबसे महंगे इंजेक्शन में से एक जीन बेस्ड थैरेपी नहीं लगता तो ज्यादा समय तक हृदयांश जीवित नहीं रह पाता. हृदयांश को ये इंजेक्शन क्राउड फंडिंग के जरिए लगा है. फिलहाल इंजेक्शन लगने के बाद हृदयांश को हॉस्पिटल में 24 घंटे तक ऑब्जरवेशन में रखा जाएगा.ह्रदयांश राजस्थान में तीसरा ऐसा बच्चा है जिसे यह इंजेक्शन लगा है. जेके लोन हॉस्पिटल में रेयर डिजीज यूनिट के इंचार्ज डॉक्टर प्रियांशु माथुर और उनकी टीम ने बच्चे को ये इंजेक्शन लगाया. बच्चे को अमेरिका से मंगवाया गया जोल गेनेस्मा इंजेक्शन लगाया गया है. हृदयांश के पिता राजस्थान पुलिस में सब इंस्पेक्टर है इसीलिए राजस्थान पुलिस में भी पहली बार इतने बड़े स्तर पर क्राउड फंडिंग के जरिये मदद की गई. क्रिकेटर दीपक चाहर और सरफराज भी हृदयांश की मदद के लिए आगे आए थे.
हृदयांश के माता-पिता नरेश शर्मा और शमा की शादी 7 साल पहले हुई थी. बेटी शुभी के बाद हृदयांश के जन्म से पूरे परिवार में खुशी थी. सिजेरियन डिलीवरी से
हृदयांश का जन्म हुआ था. जन्म के समय हृदयांश को किसी तरह की परेशानी नहीं थी. 6 महीने तक वह अपनी बॉडी का अच्छा मूवमेंट करता था. 6 महीने बाद जब परिवार के लोगों ने किसी सहारे से खड़ा करने की कोशिश की तो वह खड़ा नहीं हो पाया था. इसके बाद बीमारी का पता चला था.
आखिर क्यों इतना महंगा आता है यह इंजेक्शन
ये स्पाइनल मसक्यूलर अट्रॉफी जीन बेस्ड थैरिपी का इंजेक्शन होता है, इसको बनाने वाली कंपनी सालों तक रिसर्च करती है. जीन थेरेपी को एक बार देने की जरूरत पड़ती है जिसका असर पूरी जिंदगी रहता है. दवा की कीमत इसलिए इतनी ज्यादा है क्योंकि यह एक नई तरह की साइंस है, जीन बेस्ड थेरेपी की दवा को तैयार करने में किसी भी कंपनी के रिसर्च वर्क में अरबों रुपयों का खर्चा आता है साथ ही दवा को बनाना भी काफी मुश्किल होता है. काफी सालों की रिसर्च के बाद दवाई तैयार होती है और ज्यादातर कंपनियां इसमें सफल भी नहीं हो पाती.
3200 बच्चों को लगाई जा चुकी है इंजेक्शन
दुनिया में करीब 450 ऐसी कंपनी है जो जीन बेस्ड थेरेपी पर काम कर रही हैं, लेकिन अभी तक स्पाइनल मसक्यूलर अट्रॉफी का इंजेक्शन अभी सिर्फ़ एक कंपनी बना
रही है दुनिया में. दूसरी कंपनी का इंजेक्शन अभी अंडर ट्रायल है. वर्तमान में जो दवा है वो अब तक 3200 बच्चों को लगाई जा चुकी है और ये देखा गया कि जिस बीमारी में 100 परसेंट डेथ होती है उनमें से सिर्फ़ 9 बच्चों की जान गई, जिन्हें इंजेक्शन लगाया गया. भारत में अभी इस दवाई को लेकर रिसर्च की जा रही है. मेकइन इंडिया के तहत ऐसा हुआ तो देश की बड़ी करेंसी को भारत में ही रोका जा सकेगा. डॉलर, यूरो का प्राइस भारतीय मुद्रा की तुलना में काफी होता है. ऐसे में जब इसको भारतीय मुद्रा में
खरीदा जाता है तो यह काफी महंगी पड़ती है.
स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) एक ऐसी बीमारी है जो रीढ़ की हड्डी में मोटर न्यूरॉन्स को प्रभावित करती है. मोटर न्यूरॉन्स तंत्रिका कोशिकाएं हैं जो स्वैच्छिक मांसपेशियों की गति को नियंत्रित करती हैं. एसएमए मांसपेशियों के नियंत्रण, गति और ताकत में प्रगतिशील हानि का कारण बनता है. एसएमए (स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी)वर्तमान में इलाज योग्य नहीं है, लेकिन ऐसे उपचार और सहायता हैं जो मदद कर सकते हैं.
स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) वाले लोगों में एसएमएन1 जीन की दोनों प्रतियों में जीन परिवर्तन होता है.
उपचार के 3 विकल्प हैं
जीन थेरेपी (ज़ोल्गेन्स्मा)Gene therapy (Zolgensma): 2 वर्ष से कम उम्र के रोगियों में उपयोग और प्राथमिकता दी जा सकती है. यह एक बार का इलाज है. लागत करीब 17.5 करोड़ रुपये है.
रिस्डिप्लम (मौखिक दवा)Risdiplam (Oral drug): इसे आजीवन दिए जाने की आवश्यकता है और इसे 2 महीने से अधिक उम्र के किसी भी बच्चे में शुरू किया जा सकता है. 20 किलो के बच्चे की कीमत करीब 72 लाख है.
स्पिनराज़ा (Spinraza): इसे इंट्राथेकैली और आजीवन दवा देने की आवश्यकता होती है.
Source : News Nation Bureau