जयपुर के आराध्य गोविंद देव मंदिर से सभी भलीभांति परिचित हैं. यहां जन्माष्टमी पर होने वाला कृष्ण जन्मोत्सव कार्यक्रम की प्रसिद्धी भी कम नहीं है. लेकिन जयपुर में ही मौजूद राधा-दामोदर का भी अपना इतिहास रहा है. एक ऐसी परंपरा जो सदियों से चली आ रही है. चौड़े रास्ते में ताड़केश्वर शिवालय के सामने स्थित राधा दामोदर मंदिर में 500 सालों से जन्माष्टमी पर दोपहर 12 बजे कान्हा का जन्मोत्सव मनाने की परंपरा है. बताया जाता है कि राधा-दामोदर जी की मूर्ति वृंदावन से तत्कालीन महाराजा सवाई जयसिंह जी के आग्रह पर जयपुर लाकर स्थापित की गई थी. ये विग्रह 5 विग्रहों में शामिल है जिनको मुस्लिम आक्रांताओं से बचाकर जयपुर लाये थे, गोविन्ददेव जी, गोपीनाथ जी, मदनमोहनजी, राधा दामोदर जी, राधा विनोदी जी, इन पांच विग्रहों को सवाई जयसिंह जयपुर लाये थे.
राधा-दामोदर के विग्रह के लिए कहा जाता है कि श्री गोविंद विग्रह के प्राप्तकर्ता रूप गोस्वामी ने इसका स्वहस्त निर्माण किया और अपने भतीजे जीव गोस्वामी को सेवा-पूजा के लिए सौंप दी. इस प्रकार राधा दामोदर की सेवा का प्राकट्य माघ शुक्ल दशमी संवत् 1599 का माना जाता है. मंदिर महंत मलय गो स्वामी ने बताया कि राधा-दामोदर जी के मंदिर में भी जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है. इसकी विशेषता ये है कि दूसरे गौडिया मन्दिरों से अलग इस दिन भगवान का अभिषेक यहां दिन में दोपहर 12 बजे होता है. राधा दामोदर जी में ये परम्परा वृन्दावन से ही चली आ रही है. इसका कारण यह है. कि गुसाइयों को इस दिन गोविंद देव मंदिर में जाने और वहां की सेवा में भाग लेने का अवसर मिल जाए.
उन्होंने बताया कि दामोदर ठाकुर जी के नटखट बाल स्वरूप हैं, जिस तरह बच्चों को देर रात तक नहीं जगाया जाता और लाड़-प्यार से खिला-पिला कर रात में सुला दिया जाता है. उसी तरह दामोदर जी का दोपहर में अभिषेक कर शाम को नंदोत्सव कर रात 12 बजे से पहले ही मंदिर के पट बन्द कर दिये जाते हैं---
Source : News Nation Bureau