राजस्थान (Rajasthan) में सियासी ड्रामा लगातार बढ़ता जा रहा है. एक तरफ खींचतान विधानसभा सत्र को लेकर हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ बसपा (BSP) के छह विधायकों को कांग्रेस (Congress) में विलय को लेकर कानूनी विचार विमर्श किया जा रहा है. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब बसपा के विधायकों ने पार्टी का दामन छोड़ सत्ताधारी कांग्रेस के साथ जाने का फैसला लिया हो. बसपा विधायकों का कांग्रेस में विलय करने का पुराना इतिहास रहा है.
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राजस्थान में बसपा को पहली बार 1998 में दो सीटें मिली थी. पिछले 22 सालों में हुए 5 विधानसभा चुनाव में बसपा ने 2 बार छह सीटें जीती हैं और दोनों ही बार बसपा विधायकों का कांग्रेस में विलय हो गया. 2008 में भी कांग्रेस को 96 और भाजपा को 78 सीटें मिली थी. तब भी अशोक गहलोत ने इस विधायकों का कांग्रेस में विलय करा अपनी सरकार को पूर्ण बहुमत दिलाया था. तब कांग्रेस की सरकार ने पूरे 5 साल का कार्यकाल पूरा किया था.
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इस बार भी गहलोत ने 16 सितंबर 2019 को बसपा के 6 विधायकों का विलय कर लिया. लेकिन अब भाजपा फ्रंट फुट पर आकर इसका विरोध कर रही है इसको देखते हुए बसपा में नई ऊर्जा का संचार हो रहा है. अब दोनों ही दल नए सिरे से कोर्ट की शरण मे जाकर इस विलय को विग्रह में तब्दील करने की योजना को अमली जामा पहनाने की जुगत में हैं. वैसे पहली बार में सोमवार को राजस्थान हाईकोर्ट ने भाजपा विधायक मदन दिलावर की याचिका को खारिज कर दिया है. अब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया और बसपा प्रदेश अध्यक्ष भगवान सिंह बाबा नई रणनीति पर काम कर रहे हैं ताकि कांग्रेस सरकार वास्तविक तौर पर अल्पमत में आ जाए.
Source : News Nation Bureau