Kota News Today: राजस्थान के रावतभाटा से कोटा और उसके आसपास के क्षेत्र में चंबल नदी का विहंगम दृश्य न केवल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है, बल्कि यहां के जंगली पशु पक्षी और जलीय जीव जंतु भी आनंद की अनुभूति करते हैं. चंबल के अद्वितीय प्राकृतिक दृश्य और यहां पाई जाने वाली विविध जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ इसे एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय स्थल बनाती हैं. चंबल नदी में विभिन्न प्रकार की मछलियां, मगरमच्छ, घड़ियाल, कछुए, सारस और बतख जैसी कई जलीय प्रजातियां पाई जाती हैं. इन दिनों ऊदबिलाव की अठखेलियां पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को रोमांचित कर रही हैं. ऊदबिलाव कभी अपने परिवार के साथ दिखाई देते हैं, तो कभी मछलियों का शिकार करते हुए नजर आते हैं और जरा सी आहट से गायब हो जाते हैं.
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जल मानुष की शरारतें: हनीफ जैदी का अवलोकन
नेचर प्रमोटर और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर हनीफ जैदी बताते हैं कि उन्होंने लंबे समय बाद इतने ऊदबिलाव देखे हैं. रावतभाटा में सबमर्सिबल ब्रिज के पास इन दिनों जल मानुष का कुनबा नजर आ रहा है. चंबल की वादियों में ऊदबिलाव की खूबसूरत दुनिया सजती जा रही है. जैदी बताते हैं कि दुर्लभ प्राणियों की श्रेणी में शामिल जल मानुष बहुत शातिर और दिलेर होते हैं.
ऊदबिलाव का स्थायी बसेरा
वहीं रावतभाटा से कोटा तक के क्षेत्र में ऊदबिलावों की बढ़ती संख्या देखकर यह स्पष्ट है कि इन्हें यहां की आबोहवा और पर्यावरण पसंद आ रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक, चंबल नदी के किनारे करीब 40 ऊदबिलाव परिवार रह रहे हैं. यह परिवारवादी जीव अपने परिवार के साथ समूह में रहते हैं और अपनी प्रजनन क्षमता के कारण उनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है.
ऊदबिलाव की बहादुरी और एकता
रिसर्च स्कॉलर हर्षित बताते हैं कि ऊदबिलाव जितने बहादुर होते हैं, उतने ही परिवारवादी भी होते हैं. यह समूह में रहते हैं और परिवार के किसी सदस्य पर संकट आने पर सभी मिलकर उसकी रक्षा करते हैं. चंबल की अपस्ट्रीम में भीतरिया कुंड से हैंगिंग ब्रिज तक और गरड़िया महादेव के आसपास करीब 8 से अधिक ऊदबिलाव परिवार बसे हैं.
मछुआरों के जाल में फंसने का खतरा
ऊदबिलाव के संरक्षण के लिए मछली का अवैध शिकार रोकना जरूरी है. चंबल में अवैध रूप से मछली पकड़ने वालों की संख्या अधिक है, जिससे ऊदबिलाव भी इनके जाल में फंस जाते हैं. सरकार को अवैध मत्स्य आखेट को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए.
ऊदबिलाव का सुरक्षा अभियान
ऊदबिलाव अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर सजग रहते हैं और उन्हें खतरा महसूस होने पर आक्रामक हो जाते हैं. ये जीव काफी समझदार और फुर्तीले होते हैं, जो जल और थल दोनों जगह पर आराम से रह लेते हैं. मछली इनका मुख्य आहार है और यह अच्छे तैराक होते हैं.
ऊदबिलाव की ऐतिहासिक उपस्थिति
नेचर प्रमोटर एएच जैदी कहते हैं कि साल 1998 में जवाहर सागर, जावरा, एकलिंगपुरा समेत कोटा बैराज से राणाप्रताप सागर तक ऊदबिलाव की काफी संख्या थी. वहीं, 70 के दशक में कुल्हाड़ी क्षेत्र चंबल में भी यह दिखाई देते थे. इनकी लंबाई करीब एक मीटर होती है और यह जल और थल दोनों जगह पर समान रूप से आराम से रह लेते हैं. इस प्रकार, चंबल नदी और उसके आसपास का क्षेत्र ऊदबिलाव और अन्य जलीय जीव-जंतुओं के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक आश्रय स्थल बना हुआ है, जिसे संरक्षित और सुरक्षित रखने की आवश्यकता है.
HIGHLIGHTS
- चंबल में जल मानुष की अठखेलियां देखने उमड़ रही भीड़
- चंबल के जलीय जीव, ऊदबिलाव की अद्भुत दुनिया
- जल मानुष की शरारतें, हनीफ जैदी का अवलोकन
Source : News Nation Bureau