भारी विरोध के बाद वसुंधरा सरकार ने लोकसेवकों के संरक्षण संबंधी अध्यादेश को फिलहाल वापस ले लिया है। राज्य सरकार ने इस बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेज दिया है।
वसुंधरा सरकार ने सोमवार को भारी विरोध के बावजूद भी विधानसभा में इसे पेश किया था।
इस अध्यादेश को लेकर चौतरफा विरोध के चलते सरकार ने विधेयक में बदलाव करने के संकेत दिये थे। इस अध्यादेश का कांग्रेस समेत कई सामाजिक संगठनों ने विरोध किया था। यहां तक कि बीजेपी में भी इसको लेकर विरोध शुरू हो गया था।
सूत्रों के मुताबिक सोमवार शाम को सीएम वसुंधरा ने अपने आवास पर मंत्रियों से मुलाकात की। अध्यादेश पर चौतरफा विरोध झेल रही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने मंत्रिमंडल से इसमें पुनर्विचार करने के लिए कहा था।
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वहीं गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने विधेयक को सदन की मेज पर जब रखा था, इस दौरान उन्होंने कहा था कि, अभी तो विधेयक सदन की मेज पर आया है कुछ गुंजाइश होगी तो फिर बदलाव भी संभव है।
क्यों हुआ बिल का विरोध:
राज्य में काम कर रहे अधिकारी राजे सरकार के इस अध्यादेश के बाद किसी भी संभावित कार्रवाई से इम्युन हो जाएंगे और इनके खिलाफ बिना अनुमति लिए कोई अदालती या पुलिस कार्रवाई नहीं की जा सकेगी।
7 सिंतबर को जारी द क्रिमिनल लॉ (राजस्थान अमेंडमेंट) ऑर्डिनेंस 2017 में मीडिया को भी ऐसे किसी आरोप की रिपोर्टिंग की इजाजत नहीं होगी जब तक कि संबंधित मामले में जांच के लिए मंजूरी नहीं दे दी जाती है।
अध्यादेश में अधिकारियों को 180 दिनों के लिए इम्युनिटी दी गई है। इसमें कहा गया है, 'कोई भी मजिस्ट्रेट किसी भी सेवानिवृत्त या कामकाजी जज या मजिस्ट्रेट के खिलाफ जांच का आदेश नहीं देगा।'
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अध्यादेश के जरिए आपराधिक संहिता 1973 को संशोधित किया जाएगा और इसके साथ ही नौकरशाहों से जुड़े किसी भी मामले, उनका नाम, पता, फोटो या पारिवारिक जानकारी छापने की अनुमित नहीं होगी। इन नियमों का उल्लंघन करने वाले को दो सालों की सजा दिए जाने का प्रावधान रखा गया है।
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Source : News Nation Bureau